अग्रवाल इतिहास | Agrawal Etihas

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Agrawal Etihas by बिहारी लाल,वज्द-Bihari lal ,vajd

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हर ९ बढ़ने लगा 1 दाने: दाने: इदयोमें छिपा हुआ रदने वाला हप क्रम दोता गया। आपस के दे पादिं से जिन भाइयों फे घर बिगड़ चुरे थे और शोकर को दुःख उठा रदे थे उनके लिये अबसे यद नियम बांध दिया ' गया कि_”धघनाद्य माह उन्हें घर पीछे एक एक मुदर और पाँच पाँच ६ देकर अपने समान लक्षा भीश वनालें और इसी मकार आगें को भी अपने किसी भाई को बिंगढ़ेते न दें ।”” इस परस्पर के हार्दिक प्रेम से धीरे धीरें ये छोग पूर्व का ठ की समान फिर उन्नति प्राह् करते चले गाए. । यहां तक कि दो तीन ;सौ ही घर्ष में इन्दोंने फिर इतनी यड़ी उन्नति करकी कि जिसे उत्तरीय, मध्य भारत के बहुत से राप्याधिकार्य लोग ईर्पा की दृष्टि से देखने लगे | परन्तु इनके परस्पर के मेठ मिलाप और - को देख कर ये बड़े राजे मददाराजं को. मी इन्दें किसी प्रकार ; दूदाने का -दुम्साइस मदोताथाल ' .-: (६ विरोधाधि ... उसका .दुष्परिणाम । _ र२--यह सब कुछ था पर_ समय की कराल गति निराठी हो है। दुर्निवार है । ख्दा पक अवस्था में कोई नहीं रदता | जो अति ऊंचा 'ढ़ता है धद पक दिन अव्य गिंरता ही है'। जेसा कि' किसी क्यिं ने कद्दा हे ढ ः “जिमि जे जग्में ते सर, अरवंश बिलगांढि। ' सिमि जे अति ऊँचे थईूँ, गिरिहें संदाय नाइिं ॥ _.' _जिन में आज परस्पर प्रेम दे कल उन्हीं में सीव दूं पाझि उठने के कोई न कोई कार उत्पत' हो जाना' कोई नवीन थी आदयचपेजनक वात नहीं हैं। बिकम की *आठवों 'शताष्दी तक 'सो- धार्मिक चिचारों में सब की ऐक्यता न होने पर भी सोमाजिंक कार्य सब दी 'अगूर्बशी मदालुभाव मिंछजुछ कर ऐंक्येता से करने थे।-पर दाल पुरुंपी ने अवसर पक किसी मे किसी उपाय से इनमें फिर कट पैदा करा दी । ेव 'अंगूवालगणं जो संय्या में छापने घ जैन श्रातों से बहुत 'कमे थे और इसी लिये जिन्हें रायय ध्बंध सम्बन्धों उतवे २ अधिकार 'मिठने को अथसेर वेहुत कम प्राप्त होता था, दैंमर््य सन सर आसन अगला या




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