अनर्घराघवं एवं प्रसन्नराघवं नाटकों का तुलनात्मक नाट्य - शास्त्रीय अध्ययन | Anargharaghvam Avam Prasannraghavam Natako Ka Tulnatmak Natya Shastriya Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
228 MB
कुल पष्ठ :
377
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काव्य भेदो मे नादय:
संस्कृत काव्यो की अनेक विधाये उपलब्ध होती है, उन सभी
में नाटकों
का महत्व सर्वोपरि माना जाता है। नाट्य-विधा के मर्मज्ञों का कथन है कि काव्य...
के अन्य भेदों और प्रभेदों में रूपक यां नाटक अत्यन्त रमणीय होते हैं।' वैसे प्रायः
क
सभी विद्वानों के अनुसार यह बात सर्वमान्य ओर सर्वस्वीकार्य है
शक
काव्याकाश
नाटक सदैव से चन्द्रतारकवत् प्रतिमण्डित रहे है। इसका सर्वोपरि कारण यह
प्रतीत होता है कि नाटक आनन्द निष्यन्दी होते है* ओर काव्यानन्द से अपरिचित
ক
स
सुकोमल बुद्धि वाले सर्वसाधारण जनगण भी नाटकं मेँ अनेक प्रकार कं सुन्दरतर
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अभिनय, संवाद-योजना, रस-निष्पत्ति आदि देख-सुन और अनुभव कर असीम
और अलौकिक आनन्द का साक्षात्कार कर लेते है|
नाटक दृश्य ओर श्रव्य होते है, इसलिये इनमें रस-निष्पत्ति दू ततर गति
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से होती है। जहाँ एक ओर काव्य के अन्य भेद ओर प्रभेद केवल श्रवण मार्ग
कि
राहदयों के हृदयों को आवर्जित करते हैं वहीं
दूर्
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