पुरुषार्थ | Purusharth
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
348 MB
कुल पष्ठ :
660
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नैरकत पद्धति का भी बहुधा प्रयोग करते हूँ; तथा शास्त्रार्थ की स्पष्टता
के लिये, वस्तृपस्थापन मे, एतिहासिक विमं पदति की भी सहायता
लेते हे। शब्द और भ्रथ को 'तुलाधुत इव' अच्छी तरह जांच कर,
यथार्थ प्रयोग करने मे तो श्राप नितान्त कुशल हैं । संस्कृत तड्ूव ` টা
तत्सम शब्दों के साथ तुल्याथक अंग्रेजी, फ़ारसी, भ्रादि शब्दों को भी.
लिख देने से विभिन्न-भाषा-भाषी बहुजन-समाज को कितना लाभ होने
की संभावना है, यह बताना न होगा; इस के उर्दाह्रणो से सारा श्रन्थ
प्रोत-प्रोत है; श्राप के अन्य प्रयत्न जैसे प्रायः सर्वेपथीन होते रहे ह वस ५
यह दाब्द-प्रयोग-शैली भी सर्वेपथीन है; इस से विज्ञाप्प श्राशय भी
प्रधिक विशद हो जाता है, हिन्दी शब्दकोष का भी परिवर्धेन होता हं,
तथा अंग्रेजी और फारसी के पर्याय शब्दो का ज्ञान भी पाठक सज्जनो
में फैलता है, जो ज्ञान इस काल मे, हिन्दी-उदु का गडा मिटनिमे
बहत उपपरोगी ह । श्रद्धे भगवान् दास जी की वाक्रय-रचना-पडत्ति का, _ 4
पर्योयवबहुल शब्दप्रयोग के कारण, ক্সীং प्रतिपच्च शस्त्राय को हैतु- 1
हेतुमड्भाव-निर्देश-पूवंक विशद करने की चेष्टा से कहीं-कहीं जटिल होने
वेविध विराम चिह्न ग्रौर कोष्ठक श्रादि के प्रयोग ५
যা कप भगवान् दांस जी की प्रतिभा ने शास्त्रार्थ का कलेवर । ¢
बदल दिया ह । श्राप, प्राचीनतम श्राषे वचनो काही एसा प्रय लगाते
काल, पात्र, निमित्त श्रादिके लिये उपणक्त भी, भौर
सिद्ध होता है। यही कारण है कि भाप के
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