सिख-इतिहास | Sikh - Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47.15 MB
कुल पष्ठ :
816
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हर
प्रकाशित हुई यह जाति श्रपनी अफर्मण्यता छोड़ कर आगे वढी। और मद्दान आत्मा अखंड ज्योति के
सत्य स्वरूप श्री दशमेश गुरु गोविन्द््सिंद जी महाराज ने समय की पुकार को पूरा किया । वह समय कैसा
था उसका चित्र भाई ज्ञानसिंद जी ज्ञानी ने इन शब्दों में खींचा है ।
“सेपद शेख मुगल पठान, ज्ञालिम भए जभी बलवान ॥
हिन्दुन को दुख दियो महाए । देवन के मन्दिर गिरवाए ॥
घोर नाथ से श्रौघड साधू, पडत दत से सुमति श्रगाघू ।
मरवा चीला को खिलवाए, केचित कुत्तियों से फडवाए ।
केंचित मेंखें ठोक सुकाए, कंचित कच्चे चाम मढ़ाए ।
तुरक रोबना जिनें न मान्यो, तिन तिन को श्रति दुख हान्यो ।
यज्ञ हुवस कोई करन ना पाए, करे जो तिह दु ख दे मरवाए ।
सुन्दर पिखें जाहू की तरनी, पकर करें बलसों निज घरनी ।
काज़ी रिशवत ले कर सारे, साचे को भूठा कर डारे ।
इसी कठिन परिस्थिति मे--धरम चलावन संत उबारन, दुष्ट सबन को मूल उखारन” के लिये
चीरता की साकार प्रतिमा श्री गुरु गोविन्दर्सिदद जी आागे बढ़े । हा, इसके लिए यह झावश्यक था कि शक्ति
पूजन हो और उन्होंने शक्ति पूजन के लिए वद्द सभी कुछ किया जो करना चाहिए था, “चर्डी चरित्र”
इसका श्रमाण है |
उन्होंने कह्दा है-- *
धूप दीप सवार श्रारती करत पूजा चार सुर ।
घसत कु कुम श्रगर चदन पुष्प गघ सुगघ चर ॥
नईबवेद नाना भात विजन विविध मेवे जात तर 1
झनिक कुसुम सुगध नाना भात परिमल पसर कर (सर्व लोह प्रकाश)
यज्ञ होम आदि की रक्षा उन्होंने प्राथपन से की इसके लिए उन्हे बहुत मूल्य चुकाना पड़ा, मित्रो
के साथ साथ पुत्रों का बलिदान मी देना पडा, परन्तु दशामेश पिता का ही यह हृदय था कि अपने देश
और धर्म के लिए सब कुछ सह कर मी कर्तव्य पथ पर चलने से पाव नहीं रोका । यह उ्योति अपना
श्खण्ड रूप लिए हुए दूसरों को सदा न्याय का राह दिखाती हुई सतत जलती रही | इसी ज्योति के एक
रुप की माल्लक हमें व गा बहादुर मे भी मिलती है, जिसके बलिदान की कहानी इतिहास अपने अमर शब्दों
में पुकार पुकार कर उुनाता हे ।
जिस एकता की ओर श्री गुरु नानक देव जी ने सरस दृष्टि से ताका था वद्द मद्दाराज रणुजीतसिंह
तक ही सीमित रह गई । इसके वाद भी चली, मगर लगडा कर | यह सच्ची वात है कि जो सुन्दर द्श्य
भारत को चद्रगप्त मौयें के समय में ढेखने को मिला था वैसा ही शायद थोड़ा बहुत कम इस भारत ने
महाराजा रणजीतर्सिंह के समय मे देखा । वेद विहित रंग का केसरिया मंडा उन्होंने कहा तक लहराया
था इसे इतिहास के पाठक स्वयं जान जाएंगे । वस इसके कि गुरु महाराज के शिष्य (सिख) अपना
दूसरा बैठे जिसमे आज तक भी उन्हें अवकाश नहीं मिला ।
दर के जी के पश्चात् सिग्व बादशाहत समाप्त हो गई है चिलासिता की घुट्टी जो अंगरेज
भारत के लिए विशेष तौर से लाया था उसे पीकर वह शिष्य पंथ यादर्वा की तरद परस्पर लड़कर विनर
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