मिश्रबंधु विनोद | mishrbandhu Vinod

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिश्र छु-विनोद ১) इन नाथ कवियों के समय प्रमाणित होने से हिदी-साहित्य का आरभ कालल सं० ८०० तक सिद्ध हो जाता दे हाल ही में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता बादू काशीग्रसाद जायसवाल ने सं० ६६३ জু বলা होमेवाले महाराजा हप के समकालीन बाण कवि के अथ में प्राकृत के साथ भाषा का भी चलन पाया है । इस माणा शब्द से दिदी- भाषा का अयोजन निकलता है, सो दिदी-भाषा की प्राचीनता उस काल तक पहुँचती है । अब कृदियों का कथन चकछता है ॥ ( ३१०७ ) नास--( 4 2 सरहपा ( सिद्ध च॑० ६)। ससय--८०० के लगभग । अ्ंथू--( $ ) क-ख दोहा, (२) क-ख दोहा टिप्पण, ( ३ ) कायकोषघ-अणरतवस्रगीति, ८ ४ ) चिक्तकोष-अजवज्जगीति, ( & ) डाकिनीवच्र-गद्ध गीति, ( ६ ) दोहा-कोष-उपदेश-गीति, (७) दोहा-कोष-गीति, ( झ ) दोहा-कोप-गीति, तत्त्वोपदेश-शिखर ( ६ ) दोहा-कोष-गीतिका, सावना-इृष्टि-चर्याफल, € ৭০) दोहा- कोष, वसंत-लतिलक, ( ११ ) दोहा-कोए-चर्यागीति, ( १२ ) दोहा- कोप-सहासद्रोपदेश, ( १३४ ) द्वादशोपदेश-गाथा, ( १४ ) महासुद्री पदेश वद्धगह्म गीति, ( १४ ) वाकू-कोप-रुविरस्वरवज्- गीति, ( १६ ) सरह गीतिका । तंजू! के तंत्रखंड से पता चलता है कि इनके उपर्युक्त काव्य-अंथ मगही से भोटिया से अनुवादित हुए हैं । विवरण--इनके दूसरे नाम राहुलसद्ध और सरोजभद्द भी हें सी चगर के হুদা লাজ थे। मित्न होकर नालंद-विद्यालय में रहने लगे। सबरपाद इनके अधान शिष्य थे। कोई तांत्रिक नागाज॑ व भी इनके शिष्य थे । ब॑गाल-घरेश घमंपाल का समय ८२६ से ८६६ तक था । उनके लेखक लूहिपा शबरणपा के शिष्य थे, जिन शबरपा के गुरु हमारे कवि सरहपा थे




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