४१ वचनामृत | 41 Vachanamrit

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41 Vachanamrit by लल्लूभाई छगनलाल देसाई - Lallubhai Chaganlal Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हरि स्सृति सर्व विपद्‌ विमोकणम्‌ 9 नहि हती जब आपको बृद्धावस्था भट तवद आपने यह विचार कये जो कोइ गोस्वामी बालक परदे पधारे तो उनकुं प्रमुनकों सॉंप दे एसे समेमें भगदिच्छासें हमारे श्रीदारकेदजी तातजी श्रीनाथजीकी परथः रथ्तेकी सेवा करते हते सो वहां पधारे ओर उनके उत्तरकमेे पहॉंचके पाछें आष श्रीजीदार पधारे पीछे वरस दो वरस पीछे कोइ घरकी खटपटसुं हमारे भ्रीतातजी सहाराज कोटासुं बहार निकल गये. सो परदेदा करत हते ये बात श्रीददारकेशजी तातजीने जानी तब आपने पत्र लिख्यो के हमकूं वेरावलमें तिठक भयो हे परंतु हम श्रीनाथ- जीकी सेवा छोडी क॑ वहां नहिं रहे सकें हैं. तासुं तुम वेरावलमे रहो ओर प्रभुनको सेवा करो. ये जो मंदिर है सो हमने तुसको दे दीनो यह पत्र वांचके हमारे श्री- तातजी महाराज श्रीमगनलालजी महाराज सह-कुदुंब वहां वास करके रहे. एसी रीतसों श्रीलाडिठेदानी कपा करीके अपने माथे पधारे. इति श्रीगोबघनलाठजी महाराजकों द्वितिय वचनामूत संपूर्णम्‌




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