हिंदी की आदर्स कहानियां | Hindi Ki Aadars Kahaniyan
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.99 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हरे यक होते हुए दमारे संग्रह के योग्य भी हो । यहाँ हम एक एक कर उन की विशेषता पर प्रराश डालना उचित सससते हैं । गुलेरीजी- री चन्द्रघरजी गुलेरी की केवल एक हो कद्दानी मिलती परन्तु वह ससार वी सवशझे कहानियों में श्ादर पा सती है । पदि वी यल्पायु में उनकी मृत्यु न दो जाती तो हिन्दी कहानी -साईटस्य लाने क्तिने उज्वल रत्न वे भर देते | उसने कहा या --से हम मला की उसमे कलर देखत हैं। युलेरीओी लेखर किसी श्रादर्श की स्यनना नदी छल उपदेश देता है। मामव-समाज का उसने एवं क्लापूर्स चित्र सामने रस दै। उनरी वीक्षण शक्ति वी दुशलता सौर प्रौटता इस रद्दानी में होनी है। निक रमालोचना-सिद्धान्तों की कसौटी पर उतारने पर हमें उसके श्ारम्भ में कुछ देख पढेंगा। श्राजकल का कहानी-लेग्गक इस प्रफार गुनिवन्घ रूप में आरम्भ नहीं बरेंगा याद दम द्ारंग का दुछ ाश निकाल दे तो कोई हर्ज नदीं। परन्तु जिस युग में यह कहानी गयी थी उसमें इस प्रकार का चधघिनू चौँधले का चलन था । पद पहना भी शनुचिव होगा कि श्रारभ व्यर्थ है -सददीं इस प्रहार लेसर के मन में एक विशेष प्रकार का दातावरय उपस्पित परता है। हम उस प्रदेश के व्यक्तियों पे व्यवहार से परिचित हो जाए हैं सिनमे से दसारी पानी से पाच निरुल्ते हैं। प्यारंभ दे. बाद तो युलेरीडी दी फद्दानी उतनी स्वाभाधिक रुप में सलती है कि जान ही नहीं पता फि इसमें पी कोई कमी है। समस्त प्रसार श्ाधार पर हैं । पाठक का प्यान धीरे-धीरे उन बसुशों परनाओं सौ स्ोर श्राक होता जिददी घठीन होती की सरलना झर स्वाभाविकता से सट्टानी से यान पाल दो जे नादकों भी रो सपार्पदा है। यही पार है हि पाप इसमें साकानू सू्िमान दिरयाई पएखें हैं। उनदा समा धानरण उत्द रमारे सीद है| रुमर्त सदानी बा प्रादार सोदिट मम वासना गदी सार मदी-र हो केवल पुर फेपल पेम डीसी समन सर फे रे राय हैं पर स्देग जाता है थी परस्पर रिया है। लाभ सो सै मरी पिसी होने थी लादस है नहीं-नयरप सास यए करना कर डक शक स्टी एक घडला दर कर बयान परेरी ६ मे कि ही एस दी दर सर में पुर की सही पर राय न मे पथ 2 जा गम
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