आज का नाटक | Aaj Ka Natak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ग्व चतन पाडाग ? हा ता बहनो श्रौर মাহুয়া मेरे बहने पा साराश यह है वि यह ইনি भ्रव श्राप सब ग्रपते भ्रपने घर जा सवते हैं (प्रयाश वायय वा ग्र्तिम भ्रश बोलते योलत হীলনা वा साथ उपध्य मे चना जाता है) (जात हुए प्रवाश को हिगरारत सा देखता हुप्रा गम्भीर स्वर ग--) लेकिन झाप अपने घरा म जा भी यंसे सकते ह ? आपये घरा पर तो पूजोपति या ताला है, भौर उसवी चाबी है श्रफसर वो जेब में ।घर आपवा, ताला धघाना सेठा का গ্সীহ घावो ? चावी श्रफसर वी जेव मे) प्राजसे हो नही हजारा वर्षो से | यहा पर ही नही, दुनिया के कोने काने में | श्रार यह धन्ता सेठ बडा जालिम है। यह उस चाबी वा एक अ्रफसर वी जेब से दसरे अफसर को जेव म, दूसरे वी जेब से तीसरे प्रफमर वी जेब मे घुमाता रहता है | श्रौर মাল तोयह है विन ता यह घना सेठ ही मरता हैन भ्रफसर की जेब ही फटती है । (मच वे पीछे से अफ्सर गुजरता है । चेतन वा देखपर ठिठया जाता है तथा दुछ्ध दृढ़ निश्चय ने साथ शीघ्रता से वापस चला जाता है। चेतन चिना तिमी श्रवरोधं व ऊचे स्वर मे बालता रहता है ।) झ्राप समभते हैं श्राप अपने घरा मे रहते हैं ? जनाथ ! श्राप घरो में नही किराये वे सुविधापरस्त तम्पुओओ में रहते है । जी हा, तम्बुओ में | मुझ ११




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