बुद्ध - वचन | Buddha Vachan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
932 KB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सियारामशरण गुप्त - Siyaramsharan Gupt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९
इन गायाओं के सम्रहकतो मिषु थे । इसरिम्ट यह स्वाभाविक
था कि वे झुख्यत ऐसे वचन चुनते जो कहीं भी परिमजन करते हुए.
मारी न बैंठे । फिर मी इनमे मिश्षुओं के अतिरिक्त अम्य जनों के
छिए, मी बहुत कुछ हे। जेठवन में पाँच सो मिक्षुओं फो उपदेश
करते हुए मगवान् का वचन ই
बस्सिका थिय पुष्फ़ानि मह॒यातरि पमुन्नत्ति।
एव रागन्च दोसञ्च विप्पमुशेथ मिक््खयो॥
प् यूधिका राछ देती है फूल बे सन ग्छान जो ,
जिछुओ, छोड दो मो हो राग को और दोष को । )
गाथा--२५-२७७
छताओं को अपने म्लान पुष्प शाडते हुए फेयलछ उसी गिशु-
सघ ने नहीं देखा था, अपने थाग-बगीर्चो में एम रामी यह सब देखते
हैं। अत हम सभी इस गाया का सौरभ पा सकने पे अधियारी रै।
“यदि तोर डाफ शुने केउ ना आसे' नामक भौरवी द्रमाथ ये
गीत के 'एकला चल! के सम्बंध में कहा जाता है फि [कतों री
युवक इसका उच्चारण करते हुए, अपने प्रातति पथ में मृत्यु फो
सानन्द भेट सफे ६ै। इस पर से यह अतुमान एम राहम ही पर
सकते ट कि धम्मपद की इस गाथा ने अमृत तौर्थ के गणित
यानिर्यो को फितना अभय ओर कितनी प्रेरणा दी होगी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...