रावी - पार | Raavi Paar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खानाबदोज होते हैं। कुत्ते पालने का उहे बहुत शौक होता है और इन
कुत्ता वी मदद से ही वे जगली बिल्ला का शिकार सेलते हैं। सासी लोग
इन बिलल्लो को बडे शोक से खाते हैं ।
उन दिनो बागर्डासह नया नया जवान हुआ था। जवानी वी मस्ती तो
वैसे भी मशहूर है, लेकिन वागडरसिह के दिमाग में यह मस्ती विलकुल खर
मस्ती का रूप धारण कर गयी थी। बात-बात में गाली देना छोटे-बडे की
पगडी उछालना, विना कारण ही मरने मारने पर उतर आना, ये ये बागड-
सिंह के गुण । एक दिन दढा दीनमुहम्मद सरदार कावल।सिह् के कुत्ता को
लिये धूप में खडा था। ऐसी ही सदियो का मौसम था। कुत्ते रात भर
ठिदुरते रहे थे, जब मूय निकला तो दीनमुहम्मद उहह घूप खिलान व लिए
बाहर ले आया । इतन मे बागडसिंह भी गाव से बाहर निकला और जब
बह कुत्तो के पास से गुजरा तो एकाएक ठिठककर खडा हो गया। उसकी
नज़र एक खास कुत्ते पर जमी हुई थी। यह न दो शिकारी कुत्ता था और
न छोटा कुत्ता था, वल्कि यह खूब घने वालो और बडे ऊँचे डील डोलवाला
कुत्ता धा। इस कुत्ते के न केवल गरदन और प्विर पर बाल थे, बल्कि उसकी
दुम भी खूब भावर थी, जो ऊपर को उठकर बडी शान बे' साथ क्ूत्ते की
पीठ की ओर धूम गयी थी ।
बागर्डासहू ने महसूस क्या वि' उसकी पंगडी क॑ नीचे सिर वे धने
बालो मे एक आघ जू सुरसुरा रही है। उसने अपनी एक उंगली पगडीमे
डालकर उस ज् को जहा फी-तहा मल देन की कोडिश की और दूसरी ओर
नथुने फुलाकर बोला, “क्या, ओए दीनमुहम्मदा ! यह कुत्ता कहाँ से मारा
है?”
खूब लम्ब कद वे काले रगवाले दीनमुहम्मद ने अपन भारी पपोदो को
हिलाये बिना बागडसिह पर एक नज़र डाली ओर बोला, “भओए, हमने
कुत्ता कहाँ से लाना था ? ऐसे कुत्ता लाना ताँ मालिकाँ वा काम है ।”
बागडसिह न बपरवाही से हाथ हिलाकर कहा, “फिट्टे मुह লং মাহ
बात वा सीधा जवाब दे ना । ”
यह् कृत्ता भूटान का है 1
भूटान का नाम सुनकर वागढसिहका दिमाय चकरा गया। उसने
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