बापू की छाया में | Bapu Ki Chaya Me

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Bapu Ki Chaya Me by बलवन्त सिंह - Balvant Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ आध्यात्मिक अन्नतिकी साधना करके जीवनको समृद्ध बनाओू। जिसी दिगामे बढनेका मेरा प्रवत्त चल रहा है। ४ जिस तरह वापूजीकी माषामे भेरी नमी तालीमकी पाठ्शयाला माके नहीं बल्कि दादी और नानीके गर्भसे आरभ होकर आजतक खुसी प्रकार चल रही है। जिसी पूजीके वक पर में वापू जैसे महापुरुष तक पहुच सका और अुनका कृपापात्र वन सका। तुलसीदासजीनें कितना सुन्दर कहा है प्रभु त्तर कपि डार पर ते किये आप समान। तुलसी कहू न राम से साहिव शील নিছান।। बिन वचनोका मेने अपने जीवनमे प्रत्यक्ष अनुभव किया हैं। सत्सगकी महिमा सुन्दरदासजीने वडे सुन्दर शब्दोमें वतामी हे मातु मिले पुनि तात मिलले सुत अत मिल्ले युवती सुलदायी, राज मिले गजबाज मिल्ले सब বা নিউ নল লাভিন ঘার্জী। लोक भिरे भुर रोक मिरे विधि छोक मिले वैकुण्ठ गुजानी, सुन्दर सौर मिले सवही सुस सतत समागम दुम माजी । जैसा दुर्लभ सत-समागम मुझे वापुजीके चरणौमे वंठ कर सहन ही प्राप्त हुआ । अब जिससे अधिक गौर मे भगवान्स क्या बाहू ? बलवन्तसिह ८




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