श्राद्धविधि प्रकरण | Shradhvidhi Prakaran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : श्राद्धविधि प्रकरण - Shradhvidhi Prakaran

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about तिलक विजय पंजाबी - Tilak Vijay Punjabi

Add Infomation AboutTilak Vijay Punjabi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्राद्ध-विपि प्रकरणे ध्र श्याम से सोकर उड तय उख मूर्सने उनके मुहसे भाष निकलती देस एक दम मिट्टो और पानी उठा फर छाया द्रोगा साहय आए ही मल सटे थे उसो उनके मुद्द पर मिट्टी और पानी डाल दिया और वोटा कि हुज्ूर आपके मुहमें आग लग गई | इस घटना से द्सेया सादय ने उसे मार पीटकर और मरं समम कर अपे घरसे निकाल दिया | इस प्रकार वचन का मायार्थं न समभन वच व्यक्ति मो धर्मे अयोग्य देते ६ । ४ पहलेसे द्वी यदि किसीने ब्युद ग्राहीत (सग्माया हुआ) हो तो भी गोशालफ्से भरमाये हुए नियति बादी प्रमुफफे समान उसे धर्मऊे अयोग्य ही समझना चाहिये। इस प्रकार पूर्योक्त चार दोप बाले অন্তু को धर्म फे अयोग्य समना चादिये । १ मध्यस्यद्रत्ति समषष्टि धर्मक योग्य होता ह 1 रग छोप रहित आदर कुमार आदिके समान जानना चादिये । २ पिशेष निषुण मति-विशेषज्ञ जैसे कि देय ( त्यागने योग्य } पेय ( जानने योग्य ) नौर उपादेय ( अंगीकार करने योग्य ) के विधेककों जानने बाली घुद्धियाला मनुष्य धर्मके योग्य समझना ३ न्याय मार्ग रति न्याय के मार्गमे बुद्धि र्पने घाटा व्यक्ति भो धर्मे योग्य जानना} द्रढ निज घचन स्थिति-जपने चनकी भ्रतिकषमें ढ रहने वाटा मदुप्य भी धर्मे योग्य समभना । एस प्रकार चार गुण युक्त मणप्य धर्मके योग्य समझा जाता है । तथा अन्य भी फ्तिनेक प्रकरणों में श्रायक्फ़े योग्य इफस गुण भी कहे हें सो नीचे मुतारिक जानना | धम्मरमणस्स जुग्गो,, अखुदो रूवव पगईसोमो । लोगप्पियों अकूरो, भीरू असठो स+क्षिणो ॥ १ ॥ लज्जाडओ दयारू, मइझत्यो सोवदिटूठिगुणरागी | सकह सुपक्सजु ते, सुदीहृदुसी विश्ेसण्णु ॥ २॥ बुझणुगों विणीओ, कयण्णूओ परद्विअव्यकारी य | ^ तह चेव लद्धलक्खो, इगवीस गुणेहिं सजुतते ॥ ३ ॥ १ अशुद्र-भतुच्छ छद॒य ( गम्भीर चित्त वाहा दो परन्तु तुन्ऊ स्थमायपवाला नद्टो)० स्थरूपयान ( पा्यों इन्द्रिया सम्पूण ओर खच्छ हों परन्तु काना अन्ना तोरा छूटा लगडा न हो) ३ प्रति सौम्य ख़भायसे शान्त हो किन्तु ऋ,र न द्वो ५ छोक प्रिय (दान, शील, न्याय, तिनय, और परिधेक आदि गुण युक्त ) हो । ५ अक्र,र-अठिए चित्त (ईर्प्या आदि दोष रहित हो ) ६ भीरू-छोक निन्दासे पाप तथा अपयशसे डरने वाला हो ।७ असठ-ऋपदो न हो।८ सदाक्षिण्य-प्रार्थना भगले टरने घाला शरणागत का हित फरने बाला हो । ६ छज्ञाु-अका््य चर्जक यानी अकार्य्य करनेसे डरने पाछा | १० दयात्ु-सर पर दया रतने वाखा । ११ मध्यस्य -सग दरव रदित अथया सोम दृष्टि सपने य। दृसरेका पिचार किये पिना न्याय मार्ग में सबका समान दित करने वाला, यथा र्थे तत्व के परिणानले एक पर राग दुसरे पर देष न रखने बाला मलु॒प्य ही मध्यस्थ गिता जाता है। मध्यस्थ भौर लोमटृष्टि इन दोनों गुणों को एफही शुण माना है। श्र




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now