शरत् - साहित्य | Sharat-sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० श्रीकान्त '्यारीने सिर हिलाकर कहा, “सो तो म जानती हूँ. किंतु, इससे तुम्हारे मनमें किसी तरहका दुःख तो न होगा १ मैने हेंसकर कहा, “* नहीं, क्यो कि स्टेशनपर पड़े रहनेकी अपेक्षा तो यह बहुत ही अच्छा है। प्यारी कुछ देर चुप खड़ी रही, फिर बोली, “' यदि मैं होती तो मल ही वृक्षके नीचे सो रहती, परतु, इतना अपमान कभी नही सहती । ” उसकी उत्तेजनाको देखकर मुझसे हँस बिना न रहा गया । वह्‌ मर महस क्या सुनना चाहती है सा मँ ब्दी देरस खूब समञ्च रहा था । किन्तु, शान्त स्वाभाविक स्वरसे मैन जवाब दिया, “' मै इतना बेवकूफ नहीं हूँ कि इस बातको मनमे आने दूँ कि तुम, जान-बूझकर मुझे नीचे सोनेका कहकर, मेरा अपमान कर रही हो । यदि सभव होता, तो तुम उस दफेके समान इस दफ भी मेरे सोनेकी व्यवस्था करती । जाने दो, इन तुच्छ बातोका लकर वाग्वितडा करनकी जहरत नहीं, तुम स्तनको भेज दो किं मुञ्चे नीचका कमरा दिखा आवि, मे कम्बल बिछाकर सो रहूँगा। में बहुत ही थक गया हू । ” प्यारीन कहा, “तुम ज्ञानी आदमी हो, तुम ही मरी ठीक अवस्थाका न जान सकोग तो ओर जानगा कौन ? चला, बच गई | ` इतना कहकर उस्न एक दीर्ध श्वास दबाकर पृच्छा, ^“ एकाएक आनेका सच्चा कारण तो में न जान सकी कि क्‍या है?” म बोला, “ पहला कारण तो तुम नही सुन पाओगी, किन्तु, दूसरा सुन सकती हो । ” ४८ पहला क्यो नही सुन सकृंगी ? ` ८८ अनावहयक है, इसलिए । ` ४ अच्छा, दूसरा ही सुनाआ | ” ४ मै बरमा जा रहा हूँ । शायद आर फिर कभी मिलना न हो सके | कमस कम यह तो निश्चित है कि बहुत दिनो तक मिलाप न होगा । जानेके पहले एक दफे तुम्हें दखने आया हूँ | रतन कमरेमे आकर बोला, “ बाबू , आपके बिस्तर तैयार हैं, आइए । ” मैने खुश होकर कहा, “ चले । _ प्यारीसे कहा, “ मुझे बडी नींद आ रही है । घण्टे-भर बाद यदि समय मिले तो एक दफे नीचे आ जाना,---मुझे और भी बहुत-सी बाते करनी हैं| इतना कहकर रतनको साथ लेकर मेँ बाहर ह्यो गया ।




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