मेरा जीवन प्रवाह | Mera Jeevan Pravaah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.5 MB
कुल पष्ठ :
384
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हल मे
सनकी शान साधवी थीं ।
मेरी नामों थी मुझे खूब प्यार करतीं थीं । मेरे खिए ने. जाने कया-
गया खाने-पीने की चीज़ें सेंत-संतकर रखती थीं । और गाय-
मेंस की ग्वासली (ढोरों की सेवा) चेही करती थीं । बेचारी सबको
सुन खेती थीं । सबको राज़ी रखती थीं । पर अधिकतर ल दुखी थ।
रहीं । बुढ़ापे के द्विन उनके काफ़ी कलेश में के । 'ंत में अंधी भी हो
बाई थीं । में उनकी कुछ भी सेवा न कर सका श्रार्थिक सहायता सी
मे पहुँचा सका, दूसका सदा पछुचावा दी रही । माँ इसेशा मेरे साथ तो
गहीं, पर उनसी सेरा उतना लगाव नहीं रहा, जिवना कि नानी के साथ 1
याह्यकाला में घर की शरीयी जो खली नहीं सका झुख्य
कारण नागा शरीर नानी का मेरे उपर अत्यधिक लाइनप्यार ही था 1
बचपन सें सुनहरे पंख क्गाकर उन, मॉपडी में मैंने महल पाया, आगे
की कत्पभानभूमि पर एक सुन्दर खुमियाद भी रखी---यद सब इन्हीं दोनों
गुरुजनों की सदीखर। नीम नर थे दिन 'ात्साएँ मेरी सुष्छू
स्पोकार कर । ः का
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