मेरा जीवन प्रवाह | Mera Jeevan Pravaah

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Mera Jeevan Pravaah by Viyogi Hari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हल मे सनकी शान साधवी थीं । मेरी नामों थी मुझे खूब प्यार करतीं थीं । मेरे खिए ने. जाने कया- गया खाने-पीने की चीज़ें सेंत-संतकर रखती थीं । और गाय- मेंस की ग्वासली (ढोरों की सेवा) चेही करती थीं । बेचारी सबको सुन खेती थीं । सबको राज़ी रखती थीं । पर अधिकतर ल दुखी थ। रहीं । बुढ़ापे के द्विन उनके काफ़ी कलेश में के । 'ंत में अंधी भी हो बाई थीं । में उनकी कुछ भी सेवा न कर सका श्रार्थिक सहायता सी मे पहुँचा सका, दूसका सदा पछुचावा दी रही । माँ इसेशा मेरे साथ तो गहीं, पर उनसी सेरा उतना लगाव नहीं रहा, जिवना कि नानी के साथ 1 याह्यकाला में घर की शरीयी जो खली नहीं सका झुख्य कारण नागा शरीर नानी का मेरे उपर अत्यधिक लाइनप्यार ही था 1 बचपन सें सुनहरे पंख क्गाकर उन, मॉपडी में मैंने महल पाया, आगे की कत्पभानभूमि पर एक सुन्दर खुमियाद भी रखी---यद सब इन्हीं दोनों गुरुजनों की सदीखर। नीम नर थे दिन 'ात्साएँ मेरी सुष्छू स्पोकार कर । ः का




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