युग - युगीन भारतीय कला | Yug Yugeen Bharatiy Kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
302
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महेश चन्द्र जोशी - Mahesh Chandra Joshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)১৬
कत्ता न केवल सस्कृति का माध्यम है वरन् यह तो ठसका आवश्यक अग दै! अवएव भारतीय सस्कृति
के ऐतिहासिक अध्ययन एवं उसके समुचित ह्वान के लिए भारतीय कला का अध्ययन आवश्यक है।
किसी देश कौ सस्कृति भ स्थापत्य कला तथा ललित कलाओं की स्थिति तथा उनम अधिग कुशलता
उस देश कौ सास्कृतिक प्रगति का मापदण्ड प्रस्तुत करती है । अव प्राचीन भारतीय कला के अध्ययने
का सास्कृतिक मत्व रै।
आचोन भारतीय कला के अध्ययन से हमें ज्ञात होता है कि प्राचीन भारत के कलाकारों को कितने
प्रका के पत्ये, धातुओं तथा रगो का डान था । स्तूपो यैत्यगृहे मूर्वियो तथा मदिरो पर अकिति
अपितेखौ ঈ कलाका्ये उनके आश्रयदाताओं समकालीन शासको कलाकृतिर्यो के निर्माण के लिए
दान दने वालों के नाम भी कभी-कभी प्राप्त होते हैं। मूर्तिकला तथा चित्रकला द्वारा हम प्राचीन भारत
के विभिन प्रदेशे ओर विभिन युगों की वेश भूषा तथा आपृषणों का ज्ञान प्राप्त करते हैं । प्राचीन
भारतीय वेश भूपा के क्रमिक विकास के इतिहास में साहित्य के अतिरिक्त मूर्तिकला तथा चित्रकला
अत्यधिक उपयोगी है।
भारतीय कला के विषय प्रपुद्त पार्मिक हैं अतएव घार्मिक विकास के इतिहास में कलात्मक
अवेशेषों का अध्ययन महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालता है। यथा मगध से प्राप्त बौद्ध कलात्मक अवशेष के
आधार पर अवलोकितेश्वर और तारा देवी के धार्मिक पथ के विकास का अध्ययन प्रस्तुत किया गया
है। इसी तरह महायान बौद्ध धर्म में भक्ति पूजा तथा मूर्विपूजा के विकास के अध्ययन में बुद्ध प्रतिमा
के उदय उसके लक्षण और विकास-क्रम से अत्यन्त उपयोगी प्रकाश पडता है। प्राचीन भारत में
प्रचलित पुणकथार्ओं धार्मिक प्रतीरवो एव नाग वृश्च आदि कौ पूजा का प्रामाणिक परिचय भी प्राचीन
भारतीय कला के अध्ययन से प्राप्त होता है । इस दिशा में फोगल फर्ग्युसन कुमारस्वामी तथा ज़िमर के
श्लाधनौय प्रयलों का उल्लेख किया जा सकता है 1
प्राचीन भारतीय कला सस्कृति तथा आध्यात्मिक साधना का उत्कृष्ट दिग्दर्शन करती है। भारत
में कला और धर्म कला और दर्शन कला और रस वी सौन््दर्यानुभूति कला और योग ध्यान में घनिष्ट
सम्बन्ध रहा है। योगी अरविन्द के अनुसार स्थापत्य चित्रकला और मूर्तिकला भारतीय दर्शन धर्म
योग सस्कृति के मौलिक और केद्धीय तत्वों से न केवल प्रेरणा में अभिन्न हैं वरन् उनकी महत्ता की
गम्पीर एवं विशिष्ट अभिव्यक्ति भी करते हैं । भारतीय कलाएँ भारत वी आध्यात्मिक और धार्मिक
अनुभूठि वी लावण्यमयी लिपि के पवित्र एव सुन्दर स्वर व्यञ्न हैं। भारत में कला धर्म है धर्म कला है
कलाक तीर्थस्थान हैं। परम्पत से भक्त श्रद्धालु और धर्माथो इन पुष्य स्थलों के दर्शन करके अपने
को पवित्र और कृतार्थ मानते आये हैं ।
यदि भारत में बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास भारतीय बौदकला के विकास के आधार पर
लिखा जाये तो अधिक कठिनाई नहीं होगी । महायान में बुद्ध और बोधिसत्व का जो सूपान्तर हुआ
उसव्स चित्रण हमें गन््धार कला और अजन्ा की गुफाओं को कला में उपलब्ध होता है। बौद्ध कला
भारत में बौद्धर्म के विकास के क्रमबद्ध इतिहास का स्वरूप प्रस्तुत करती है। भारतीय सस्कृतिके
User Reviews
No Reviews | Add Yours...