कर्मस्तव - दूसरा कर्मग्रन्थ | Karmastava - Dusara Karmagrantha
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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অল্মঙ্ক (६ सेकनेदाले) रूस्कार्य की स्यूनता-अधिकता या
भन्दता-सीजन्रता पर अवलाम्बित हैं | प्रधम तोच शुणसस््थानों
मे द्शन-शक्तति द चारित्र-शक्ति का पिक्तास इसलिये नहीं
होता कि उनसे उन शक्तियो के पतिरन्धकू स्का द
अधिकता या तठीहदा है चतुर्थे आदि गुरस्थनोमैवेदही
घतिवन्धक सेस्कार कम {मन्द्} दो जात्ति हैः इसे उन
शणस्थानों में शक्तियों का चिक्तास आसस्स हो जाता ইং
इनं भरतिदन्धत्त ( क्पाय ) सस्कारोकते स्थूल दृष्टि से
४ चिसाग किये हैं । ये विभाग उन कांषशयिक्त सस्का्ये की
दिपाक-शक्ति के तरतम-साव पर आजश्ित हैँ । उनमे से
पहला दिसाग--जो दशैन-शक्तित का प्रतिवन््धक हेैं--उसे
दशनमोह तथा झचनन््तानुवन्धी कहते हू । शेष तीन दिसाग
चारित्र-शक्ति के ग्रातिबन्धक हैं। उनकी यथाऋम अधघत्या-
र्यानावरख, प्रत्याख्यानावरण और संज्चलन कहते है 1
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प्रधम विसाग की तौघता. न््यूनाघिक्त अमार ঈ জীন
रखस्थान ९ मूमिकाशआः ) तक रहती हैं । इस से पहले तीन
युखस्थानो म दरौन-्क्त्ति के श्राविभोव क्म सम्भ नहीं
होता । कपाय के उक्त प्रथम विभाग की अरपत्, मन्दता
या अमण्व होते ही दर्शन-शक्ति व्यक्त होती है! इसी समय
आत्मा की दृष्टि खुल जात्ती है। दृष्टि के इस उस्मेप को विवेक्त-
, जया, सदुहझ्लाद, प्रछादे-परुषानयदा-सात्तात्कार आर र्ट
छस् भा कहते हूं |
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श्सी शद्ध डि से जात्मा जड-चतन् क्न भद्. अरदिग्ध-
'रूप से जान लेता डे ! यह उसके पचिक्ञास-ऋम की আটা
भूमिका है । इसी भूमिका ले चह अन्तदेष्टि वन जाता हैं
झोर इात्म-मंदिर से चेतेमाच सासर्विक परमान्म-स्वरूय को
देखता है। पहले करी तीन भूमिकाओम दस्तेनमोह कोर ऋनन्ताु
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