कर्मस्तव - दूसरा कर्मग्रन्थ | Karmastava - Dusara Karmagrantha

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Karmastava - Dusara Karmagrantha by वीरपुत्र - Veerputra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(হ) অল্মঙ্ক (६ सेकनेदाले) रूस्कार्य की स्यूनता-अधिकता या भन्दता-सीजन्रता पर अवलाम्बित हैं | प्रधम तोच शुणसस्‍्थानों मे द्शन-शक्तति द चारित्र-शक्ति का पिक्तास इसलिये नहीं होता कि उनसे उन शक्तियो के पतिरन्धकू स्का द अधिकता या तठीहदा है चतुर्थे आदि गुरस्थनोमैवेदही घतिवन्धक सेस्कार कम {मन्द्‌} दो जात्ति हैः इसे उन शणस्थानों में शक्तियों का चिक्तास आसस्स हो जाता ইং इनं भरतिदन्धत्त ( क्पाय ) सस्कारोकते स्थूल दृष्टि से ४ चिसाग किये हैं । ये विभाग उन कांषशयिक्त सस्का्ये की दिपाक-शक्ति के तरतम-साव पर आजश्ित हैँ । उनमे से पहला दिसाग--जो दशैन-शक्तित का प्रतिवन्‍्धक हेैं--उसे दशनमोह तथा झचनन्‍्तानुवन्धी कहते हू । शेष तीन दिसाग चारित्र-शक्ति के ग्रातिबन्धक हैं। उनकी यथाऋम अधघत्या- र्यानावरख, प्रत्याख्यानावरण और संज्चलन कहते है 1 স্‌ प्रधम विसाग की तौघता. न्‍्यूनाघिक्त अमार ঈ জীন रखस्थान ९ मूमिकाशआः ) तक रहती हैं । इस से पहले तीन युखस्थानो म दरौन-्क्त्ति के श्राविभोव क्म सम्भ नहीं होता । कपाय के उक्त प्रथम विभाग की अरपत्‌, मन्दता या अमण्व होते ही दर्शन-शक्ति व्यक्त होती है! इसी समय आत्मा की दृष्टि खुल जात्ती है। दृष्टि के इस उस्मेप को विवेक्त- , जया, सदुहझ्लाद, प्रछादे-परुषानयदा-सात्तात्कार आर र्ट छस्‌ भा कहते हूं | [३ ध 4 {प 4 4 श्सी शद्ध डि से जात्मा जड-चतन्‌ क्न भद्‌. अरदिग्ध- 'रूप से जान लेता डे ! यह उसके पचिक्ञास-ऋम की আটা भूमिका है । इसी भूमिका ले चह अन्तदेष्टि वन जाता हैं झोर इात्म-मंदिर से चेतेमाच सासर्विक परमान्म-स्वरूय को देखता है। पहले करी तीन भूमिकाओम दस्तेनमोह कोर ऋनन्ताु




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