यथार्थ आदर्श जीवन | Yatharth Aadarsh Jeevan

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Yatharth Aadarsh Jeevan by जीतमल लूणिया - Jitamal Looniya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विडम्बन जीवन १९ करर उतना हौ पैर पल्लारा है जितनी छवी रजाई हैः तमी तो एक खर्देसे तंग आकर चिन्ता-चक्रमें पड़ा रदता है और दूसरा, खुशोके साथ खर्च करके कुछ जमा भी करता हैं। थोड़ा भी यदि विचारसे काम लिया जाता तो नकर करने- घालेको ख्चेंसे तना तंग न माना पडता 1 कर्चोकी जगह यदि धक गौ होती तो दूध, घी, ददी, मलाई, मक्लन, सोभा इत्यादिसे थोडे परिधरमर्मे खारे परिवारका हृद्य परिपूर्णं रता ओर उनकी खूरांकफे वद्छे यह क्या खाती, शायद्‌ कमम ही इसको गुजर दो जाती ओर गोवर जखावनक्रा यटग काम देता | जब आगे बच्चे बढ़ते तो वेचकर दाम मिलते या एक गोशाला ही खड़ी दोती ओर जिनका पालन-पोपषण चराईमात्रले सम्पन्न होता है। यदि गृदिणों और परिवारकी स्त्रियां अपने दाथसे खानेकी चीजें तैयार कर लेती तो एक मापी दासे काम चछ जाता। भड्गीकी कोई आवश्यकता नहीं थी यदि हिन्दुस्तानी पैखाना दोता। हां, सफाईपर विशेष ध्यान चाहिये । इसो प्रकार मांख और कड़ी मद्रिके सेधनकी जरा भी आवश्यकता नहीं धी;क्योंकि भारतीय अन्न, कन्द, फल, মৃত ঘন गोरस बहुत अपने देशमें पाते हैं, और मद्यकी बात तो सवालके बाहर है; क्‍योंकि अब तो यूरोप भी इसका जोरोंसे परित्याग करने छगा है | मारतसघ्राटु पदञ्मम जोजेतकने अपने राजमचनमें इसकी पहुंचकी मुमानियत कर दी है ओर स्वयं एक वैप्णवके समान दस विषयमे रहते है} इस ठद्धपर बहुत सूपये वच जाते, जिनसे उस परिवारको यथार्थ




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