कार्नेगी पहिला प्रकरण | Karnegi Pahila Prakaran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Karnegi Pahila Prakaran by उमराव सिंह कारुणिक - Umrav Singh Karunik

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about उमराव सिंह कारुणिक - Umrav Singh Karunik

Add Infomation AboutUmrav Singh Karunik

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
चाल्य-फाल | ७ ~~~ ~ +~ ~ प्र कप्पनी ॐ म्वामी की दन्य के कारण चस्पनी कै दस हिस्से विफाऊ हैं| प्रत्येक दिल्‍्से की कीमत ६० डालर €। इस प्रकार दूस हिस्से ६०० डालर के होते हैं | यदि छुम ५०० डालर किसी प्रकार एकत्रित करसकों तो में १०० डालर तुम को तुम्हारे वेतन में पेशगी देद गा | इस प्रकार तुम दस हिस्से ले सकते हा। मेरी समझ में यह वहत अच्छा अवसर हैं| फारनेंगी फी तबियत पहिले ही से तिजाश्त की ओर कूकती थी | इस अवसर को पाकर वडा प्रसन्न हवा । भिन्तु चडी कचिनाई यह आपडी कि रुपया कहां से आंवे ? अरतु । काने गो ने घर पर जाकर इस बात का जिक्र किया | मा ने कष्टा- “निराश टोने की कोई वात नहीं है, जिस प्रकार भी हों सकेगा रपये का प्रवस्ध किया ही जायगा” | बहुत कुछ सोचने विचारने के घाद यहो निश्चित #वा कि मकान गिरवी रख देना चाहिये । इस प्रकार कार्नेंगी ने एफ्सप्रैस फम्पनी के दस ौिस्सि ले लिये। यही से फार्निगी के अभ्युत्थान का युग आरम्त होता है। फुछ ही दिनी बाद कार्नेगी को अपनी थोग्यता दिखाने का एक और अवसर मिला | एक दिन केला हुवा कि मिरदर কাত को दफतर आने में देश हो गई। उनकी अनुपरिधिति में रेलने लाइन पर कुछ दुर्घटना होगई और मिस्टर स्काट की भावश्यकता पड़ी। फार्नेगी ने अपनी घुड्धिमता से सारा काम खय॑ ही निपटा दिया | स्काट साहव ने जब आकर सब ज्षत्तान्त खुना तो चडे प्रसन्न हवे और कार्नेगी को अपना प्राइवेट सेक्रेटरी चना लिया | सन्‌ १८६१ में अम्नीका में सिविल चार ((१५1] ४ 01) छिंड़गई | फार्नेगी की आयु इस समय २७४ चर्ष की हो गई थी । मिस्टर स्कार को इस युद्ध में युद्ध फे सहायक मत्री का काम मिला कार्नेंगी ने स्काट साय को घड़ी सहायता दी | काने गी का काप्र फ़ान तथा रखद




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now