एक माताव्रत | Ek Matavrat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)माता की पति-सेवा का उतना नहीं--कहें कि कुछ भी नहीं। मालुम
होता है, गाँधी जी की पितृ-सेवा के सामने उनकी माता की पति-्सेवा
के लिए जैसे गुज्ञायश ही नहीं रह गयी थी | सिफ एक मा था--वत-
त्तपत्या का | कठिन-सें-कढिन त्रत वह करतीं, बीमारी के दिनों में भी |
चतुर्मास मेँ उन्होने प्रण किया, सूयं को देखकर ही भोजन करेंगी ।
घटा-पानी में सूर्य-दर्शन मुश्किल हो जाते। इन व्रतो का जिक्र करते
हुए गाँधी जी कहते हैं, “ऐसे दिन मुझे याद हैं, जब सूर्य को देखकर
हमने पुकारा है, मोमो, वह सूरज निकला ! लेकिन मों के आने तक
सूरज छिप जाता । मॉ कहतों, खैर, कोई बात नहीं; ईश्वर नहों चाहता
कि में आज भोजन खाऊ।”
आश्चर्य है, गॉधी जी नास्तिक नहीं बने, हालाँकि जगत-बापू वह
बन गए, हैं। अपनी पितृ-भक्ति तथा माता को सहनशीलता के आदर्श
की प्रति मूति के रूप में स्थापित करने का अवसर লী उन्हें इसी की
बदौलत मिला है |
माता जी के त्रत-उपवासों का पिताजी पर क्या श्रौर किस तरह
का प्रभाव पड़ता था, इसका पता नहीं चलता | घर की चहारदीवारी मे
दो ही चीजे जसे हमारे सामने श्राती है--माता के तरत-उपवास श्नौर
पुत्र की पितृ-सेवा। भाता की व्यवहार-कुशलता, बुद्धि और योग्यता,
गाधी जी कहते हैं, रनवास में ढीक-ढीक आड्डी जाती थी | माँ साहब--
उाकुर साहब की विधवा माता और चालीस वर्षीय कवा गाधी की युवा
पत्नी एक-दूसरे को समझती थीं, ठीक मूल्य आकती थीं | गाधी जी की
स्टृति में यह सम्मेलन अब तक ताज़ा है |
पितृ-सेवा और विषयासक्ति गॉधी जी के जीवन में साथ-साथ, मानो
ताल देते, चले हैं| क्लइमैक्स पर दोनों पहुँचे हैं पिता की बीमारी के
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