बलिदान चन्द्रशेखर आजाद की रोमांचकारी जीवनी | Balidan chandrashekhar Aajad Ki Romanchakari Jivani
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
167
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about नन्दकिशोर निगम - Nandkishor Nigam
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हा, पण्डितत जी के पिता सीताराम तिवारी जी अवध्य उन्नाव जिले वे
रहने वाले थे । उनके तीनों विवाह भी इसी जिले मे हुए थे । पण्डित जी की
माता जगरानी देवी तिवारी जी दौ तीसरी पत्नी थी ।
पण्डित जी के पिता सीताराम णी बडे शोधी थे । वह अपने तड़के को
अपनी कडी तिगरानी में रखा करते थे और उनके पटने-लिखने पर अधिव जोर
देते थे । पण्डित जी को उनमे स्नेह फम था, डर अधिव । इस पिता मे स्नेह के
अभाव को उनकी माता पुरी करती थी जिनको अपने पुन से अगाढ प्रेम था 1
एक दिन पण्डित जी, जब उनकी आयु १३ बर्प की थी, उस राज्य वे
एक बाग में से, जिसवे' उनके पिता सुप रिन्टेन्डेन्ट थे, चार बडे-वडे आम के फल
तोड़ कर घर ले आए । माली ने सुपरिस्टेन्डेन्ट साहव के पुम होने वे नाते
उनको 'रोबा नहीं । जब उनके पिता ने घर पर चार आम रखे देखे तो उन्होंने
अपनी पत्नी से पूछा वि' आम कहा से आए । पत्नी ने उत्तर में पण्डित जी का
नाम बता दिया । सीताराम जी वो क्रोध आया भर उन्होंने पण्डित जी को
चोरी करने पर साछना की और वहुत डाटा । माता ने पु का पक्ष लिया ।
इमसे पिता का क्रोध और भड़क उठा और उन्होंने पण्डित जी को भाली
को आम लौटा देने के लिए कहा । माता वो अपना पक्ष लेते देख पुप्न ने आम
लौटा देने से इस्कार किया और साथ ही कह दिया कि वहू साली से क्षमा
याचना भी नहीं करेंगे । सीताराम जी के क्रोध वी सीमा मही रही । उन्होंने
पण्डित जी को घर से बाहर निकाल दिया ओर कहा कि जब तक बह माली
से क्षमा नही मागेंगे वह उनको घर मे नही घुसने देंगे । घर का अन्दर से
कुण्डा बन्द कर अपनी पत्नी से कह दिया कि यदि उन्होंने दार खोला या अपने
पुष्न का पक्ष लिया तो वह उनको भी घर से बाहर निकाल देंगे । यह सब
लगभग नौ बजे रात को हुआ था ।
पण्डित जी भी सीताराम के पुत्र थे । उनका भी क्रोध भडक उठा ।
उन्होंने भी बाल हठ ठान ली कि वह माली से क्षमा मागेंगे ही नहीं । वह
घर वे अन्दर उस समय तक नही जाएंगे जब तब उनके पिता स्वय ही बाहर
आकर उनको घर में नहीं ले जाएंगे । वह १३ वर्षीय थालक वी बाल हुठ
उनवी प्रतिज्ञा मे बदल गई जो उन्होंने लगभग शाजीवन निभाई केवल एक
चार छोडवर वह १६२८ में अपने वितने ही साथियों के अनुरोध पर सदाहिव
राव मलकापुरवर को साय ले भावरा गये थे और अपने माता-पिता के पास
बेवल र४ घण्टे ही ठहरे थे । उसके पदचातू उनके मन मे वभी भी यह विचार,
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