भिक्षु ग्रन्थ रत्नाकर [ खंड २ ] | Bhikshu Granth Ratnakar [ Vol-2 ]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
752
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आचार्य भीखणजी - Acharya Bhikhanji
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श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भूमिका °
ञे कायर करं प्चलंण रे, तो विक्रङाइ _ केरे ।
त्यां जीत जनम विगा्यो ए ॥
जे कीज त्याग कैराग रे, करम काट्ण অর্গা।
तो घना नीं परे पालजो ए ॥
१०-सहीनाथ रो वखांण :
स्वासीजी ते इत व्याख्यान क स्वना जञातासुत्र' के आठवें भ्रष्याय के आधार पर की है।
विदेह की राजधानी मिथिला मे कुम्भ नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम
प्रभावती था। उसके मछि नामक एक पुत्री थी और महुदिन्न नामक एक कुमार। मह्लि रूप मे
असाधारण थी । पूर्ण युवावस्था भा जाने पर भी उसने विवाह नहीं किया और श्राजीवन कौमार्य
प्रत--अद्नाचर्य-कत--पालन करने का संकल्प कर लिया |
उस समय कोशल मे भ्रतिबुद्ध, श्ग में चद्नच्चाय, काशी में शंख, कुणाल में रूप्मि, कुछ मे श्रदीनशात्र
शरीर पाचाल मे जितत नाम के राजा राज्य करते थे ! महि के अपूर्व सौन्दर्य की कहानी इन राजाओं
ने सुती रौर राजकुमारी के लिये मोदित हो उन सवने अपने-्पने दूते कुम्भ राजा के पास भेजे और
विवाह का सन्देश कहलाया ।
राजदूतो ने आ्राकर अपने-अ्रपने राजाओं की मांग पेश की परन्तु कुम्म राजा ने सभी की माग को
दुकरा दिया | अपनी मांग को भस्वीकार होते देख छहो राजाओं ने मिथिला पर चढ़ाई कर दी!
दोनो पक्षी मे भयंकर युद्ध हुआ । छटो राजाओं की विश्ञाल सेना के सामने कुम्भ नहीं ठिक सका ।
लाचार हो उसने किले के फाटक बन्द करवा दिये। छहो राजाओं ने अपनी सेनाओ से मिथिला को
घेर लिया ।
भल्ठि कुमारी ने इस छहो राजाओं को समझाने के लिये एक युक्ति निकाली ! उसने श्रपने ही रूप
की प्रतिमा तयार करवाई । वह प्रतिमा भीतर से पोली थी शौर सिर पर पेचदार ढक्कन से ढकी हुई ।
अतिमा देखने मे इतनी सुन्दर थी मानो साक्षात् मल्ली ही खडी हो)
मल्लि कुमारी उस मूर्ति से रोज खाद्य पदार्थ डालकर उसे ढक देती थी। एक दिन उसने
अपने पिता कुम्भ राजा से निवेदन किया---पिताजी । आप चहो राजभ्रो को मेरे पास भेज दें, मैं
उन्हें समझा कर शान्ति स्थापिते कर हू गी। महाराज कुम्भ ने वेसा हो किया। छहयो राजा पुतली घर
में अलग-अलग मार्ग से एक साथ झ्राये। उन्होंने मल्लि की प्रतिमा को ही साक्षात् मल्लि कुमारी
समझा और श्रत्यत्त मोह-विह्लल हो गये । मल्लिकुमारी ने भ्राकर प्रतिमा का ढकन उधघाड़ दिया।
ढक के खुलते हो उसमें से इतनी भयकर दुर्गंध श्राने लगी कि सभी ने अपने-अपने ताक ठक लिये
और वहाँ से निकलने का प्रयत्न करने लगे उपयुक्त अवसर जान मल्लि कुमारी चं चहो राजाय को
सुन्दर लगती भानवी देह की श्रसारता वताई और भोगो के दष्परिणामो से श्रवगत कराया } राजां
मल्लि कुमारी के उपदेशो से बहुत प्रसावित हुए और उन्होने मल्लिकुमारी के साथ दीक्षा लेने की इच्छा
व्यक्त की । छहो राजा अपूते-प्रपन नगर लौट आये और पुत्रो को राजगद्दी पर बैठा मल्लिकुमारी के
साथ दीक्षा ग्रहण की।
इस व्याज्यान में अशुचि भावना का वढा सुन्दर वर्णन है। स्त्री-वेद और तो्थकर-गोत्र बने के
तुभो का भी वर्णन है। महावल कुमार के पूर्व भव से सहिनाथ ने मित्रो से कपट कर अधिक तपस्या
की। उसकी भावना अधिक तपस्या के सहारे उसकी अपेक्षा उच्च स्थात प्राप्त करमे की थी, इससे
उपके स्त्री-देद का बंध हुआ ।
तीर्यकर गोजर बंधने के हेतुओ का वर्णन इस प्रकार हैः
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