श्रीयशोधर चरित्रप्रारम्भः | Shri Yashodhar Charitraprarambh
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अब काबे छुलतिलक और सरखती का आलय श्री
| पुष्प्दते सवि दवोक स्वरूपकाः वणन सतै
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खंर्कत टोका्थे
दह मारेदत्त नुप के प्रचठ शत्षओं का विष्यंश कारियी
रि नाम का कुल दवता । वंताल काल (६ ब्ंष्या
मासि का अवलोकन करती रजयर नामक नमरं
दिशा स्थित आवास में निदाश करती थी জিজ
रे देवता का लुंवमान मरझुंडमाला उर्स्थल, ३ ल-
शुम्मख, विकराल डाढ़, सपिशी के बंधन युक्त दीधे
लंचमान स्तन थुगल, निःसरती अश्नि की ज्वाला
तृतीय नेत्र, लंवमान, रक्त से आरक्त ललित जिह्वा
( चर्वी ) की ऋदम से चा्वित कपोल, सुजंगनी विनि-
कटिसूत्र से व्यास कटिभाग, सर्पच्छादित चरण युगल
स्मशान की धूलि से धूसरित काय, माँस रहित भयंकर
अरिय चमे, मथूर शिखा समान कठोर और उन्नत केशा-
। बली, भरतको की अंत्रावली कर् विभूषित इजा, इत्यादि |
| महा बीमत्स रूप की धारनेवाली चंडिमारि देवी । जीवों को
' आसित करनेवाली और जिनेन्द्र मागका तिरस्कार करती थी
| वह देवी । हिंसा मांगे को प्रगट करती, दया धर्म दूर भ-
गती, नग्न शरीराः मांस के भास के निगलने को सुख |
| उबाड़ती, कपाल कंबन्ध ओर असल को धारण करती, विः
रजस्यव थीं उसी देवी का महा भक्त मारिदतत राजा था
भेखाचाय-रजन् ! यदि गगन पथ का पिक बनना
हो ओर विद्याधर शत्रओकों विजय कर दिगिजय करना हो
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