श्रीयशोधर चरित्रप्रारम्भः | Shri Yashodhar Charitraprarambh

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Shri Yashodhar Charitraprarambh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সস সপ ৪০৪ श्री य शो धर्‌ चरित्र $~ ९१ | | এ ০ ৮:০৯ न सलोय अब काबे छुलतिलक और सरखती का आलय श्री | पुष्प्दते सवि दवोक स्वरूपकाः वणन सतै 1 1 खंर्कत टोका्थे दह मारेदत्त नुप के प्रचठ शत्षओं का विष्यंश कारियी रि नाम का कुल दवता । वंताल काल (६ ब्ंष्या मासि का अवलोकन करती रजयर नामक नमरं दिशा स्थित आवास में निदाश करती थी জিজ रे देवता का लुंवमान मरझुंडमाला उर्स्थल, ३ ल- शुम्मख, विकराल डाढ़, सपिशी के बंधन युक्त दीधे लंचमान स्तन थुगल, निःसरती अश्नि की ज्वाला तृतीय नेत्र, लंवमान, रक्त से आरक्त ललित जिह्वा ( चर्वी ) की ऋदम से चा्वित कपोल, सुजंगनी विनि- कटिसूत्र से व्यास कटिभाग, सर्पच्छादित चरण युगल स्मशान की धूलि से धूसरित काय, माँस रहित भयंकर अरिय चमे, मथूर शिखा समान कठोर और उन्नत केशा- । बली, भरतको की अंत्रावली कर्‌ विभूषित इजा, इत्यादि | | महा बीमत्स रूप की धारनेवाली चंडिमारि देवी । जीवों को ' आसित करनेवाली और जिनेन्द्र मागका तिरस्कार करती थी | वह देवी । हिंसा मांगे को प्रगट करती, दया धर्म दूर भ- गती, नग्न शरीराः मांस के भास के निगलने को सुख | | उबाड़ती, कपाल कंबन्ध ओर असल को धारण करती, विः रजस्यव थीं उसी देवी का महा भक्त मारिदतत राजा था भेखाचाय-रजन्‌ ! यदि गगन पथ का पिक बनना हो ओर विद्याधर शत्रओकों विजय कर दिगिजय करना हो न ৯৯ 1 এল আট ८ ०० = =-= উই => 42 0 - 8 - ~ =) < ~~ 9 क | রা, ध, ~. | ध नः নে ९1५ 1 = ८ ०४५ | = ->2 2 ৫] त्म < পাপ ~ --~---~----~-~ ---------- -------~-- সপ > > --




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