प्रबन्ध - पीयूष | Prabandh Piyush
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
501
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ छ |
से अनुवाद करके मुहावरे अथवा लोकोयं न रक्खी
जाये, क्योंकि ऐसा करने से भाषा का रूप विकृत हो
जाता है। जेसे-अँगरेजी के मुहावरे 0 एफ 009
< 92979 {16 10786 के हिन्दी-अनुवाद घोडे के
सम्मुख गाड़ी रखनाः का प्रयोग किठना ह्ास्यास्पद् होगा।
लक्षणा शक्ति का प्रयोग भी भाषा की रोचकता में वृद्धि
करता है । जैसे-प्रेम अन्धा होता है । इसके स्थान पर
यदि हम कहें प्रेम में सनुष्य को कतंठय अकतेज्य का
ज्ञान नहीं रहता! तो यह वाक्य फीका हो जाता है ।
भाषा म यत्र-तत्र विनोद् का पुट अवश्य रहे । इससे
द्ृदय की कली-कली खिल जाती है ओर मन नहीं ऊबता |
स्मरण रहे कि विनोद कुरुचि उत्पादक अथवा मयोदा-
विरुद्ध न हो ।
निवन्ध का सौन्द्रयं अलङ्कारोके प्रयोग से वद् जाता
दै, पर उनकी भरमार अच्छी नहीं । जहाँ जो अल्लंकार
स्वत: विधास्म्वाह मे श्रा जायं उन्हीं को निबन्ध में
स्थान दिया जाय | सिर खुजला-खुजलाकर रचना में
अलंकार विछाना ठीक नहों। उपसा, उत्प्रेक्षा, रूपक आदि
साचश्य सूलक अलंकार भावों को स्पष्टता प्रदान करते ই।
उनके प्रयोग में भाषा सें लालित्य एवं रमणीयता आ जाती
है। जेसे-'जब साहित्यकार के हृदय-समुद्र में वाह्म परि-
स्थितियों द्वारा मंथन होता है तव भाव-लहरें उठने लगती हैं ।
निचन्ध में यथास्थान उदाहरण देकर विचारों को
स्पष्ट और पुष्ठ करना चाहिए । जहाँ कोई सूह्म विचार
अकट करना हो वहाँ उदाहरण अवश्य दिया जाय, अन्यथा
म 20000.
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