युग - सन्देश | Yug Sandesh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चोथा परिच्छेद
~, स्मेश जत्र श्रपने कमरे में पहुँचा, तो तारा अधलेटी-सी आराम-
: कुरी पर पड़ी थी । उसने अद्धनिमीलित बड़े-बड़े नंत्रों से पति के
धघवराये हुए मुख की ओर देखा और उसके सुन्दर ओठों पर मुसकान की
. एक रेखा खिंच गईं । छोटी किन्तु दीखी द्विम की भाँति श्वेत नाक भी
। मानो ओठों के साथ दी मुक्तक उठी । उका उन्नत ललाट श्रौर
` उख पर खेलते हुए; काले कुन्तल खिल-खिल पड़ते ये ।
ह । ` पै, कमरे में घुखते हुए. स्मेश ने गस्जक्रर कदा-- कभी भी
` , वकालत नदीं करूगा ॥ :
व्तो न कीजिए, नाथ ! तारा व्यंग्यकी हँसी हँसकर बोली--किन््ठ॒
“ क्रो तो छोड़िए ।' हि
.-.. “देखो तारा, तारा का पति खौझकर बोला-- यह हंसी की बात
` नदीं य मेरे लिए, जीवन और मृत्यु का प्रश्न है ।
- ~ जीवन और म॒त्यु ताय कुरसी पर सीधी ब्ैठ गई | उसके नेत्र
| ধু एकाएक पूर्ण रूप से खुल गये | उनमें से निकला हुत्रा हृदयहारी तेज
- -स्मेश के चेहरे पर जा फैला | उसके स्वर में एकाएक गम्भीरता श्रा
न गई-- मृत्यु का नदीं हाँ जीवन का प्रश्न अवश्य तुम्दारे सम्मुख आ
' खड़ा हुश्रा हे 7 । क
` मृत्यु का क्यों नहीं ! वकालत करूँगा नहीं: और यदि और काम
: न मिलेगा, तो-फिर भूखों दी मस्ना. होगा / -
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