अशोक | Ashok(etihasik Natak)

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Ashok(etihasik Natak) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंक २, ভু आनन्द्भाधन. हमलोग सद्गेष आपके दर्शनों -के- তি लाकायित रहपे है। आज आपने हमे स्तय बुख।५। हे। इससे बढकर भौरन की बात क्‍या हो सकती ই? >..- - शुअपेश आपके एक साधारण कायं -क। ही बड़ा - उद३२५ होवाहै। 2. # = * «+> अभी आपने कह। था; ऐसी परिस्थिति ही आ पड़ी थी। किस महान कार्य की साधना में-हमलोरों को ७०७ ५। स्वीकार करी ˆ 8 ८. च+ বলা ২৭৭৭ ] मै तदेन जप्‌ रोगों से पेसी दी आशा रखता हूँ। किन्छु जिख आश। फर[ स्वृष्न मैंने अभी ऐख। है,- ९. अपू् है “वह्‌ केन হও শপ) পথ नहीं, मनो चह खोक भी इसी में बन्द है। थदि एक १।९ शत्य होप गिरीश जो स्वप्न देखना जानता है, वही उसे भत्थक्ष भी ९ सकत है के ः घर्म०. सामन्तों ! भेरी आशा का ৭৩ ৭। असफण होना आ।५ ही लोगों ५९ निर्भर है। এ + सन हम लोगो को जो आश्ञ-हो, करने को ०८५९ ह । এব आज घर्म पर भयंकर विषति पी है, आर हम हाथ पर হা धर्‌ ये हे 1स्तिकती की भ्रव ।९ ०९० [ ज {ह है पेदों की असारता ৬10৭ की जो रही है यज्ञ भन्‍द फिये ज। रहे हैं। यदि यही प्रभाव छुछ दिनों तक नढ़ता रहा; पो निस्‍रशान्देह অর্ধ निथूख द जयम | কি ৯ हु १९




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