चक्रव्यूह | Chakravyuh

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Chakarvyouh Sanskriti Pradhan Poranik Natak by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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এ १५६५१ चर 11 ৬৭8 भप्त पहला अक 4৩1) फिर ঠা पीर की जगह चरक को पह निव्ली तह होती हैं जहाँ 0) की एक मी (८९ गर्ही पमी | ৩৭ ক न ₹हने से ह तल प की ५ ले, .. (६.पद्‌ कौ ५६) शिव ... शिर्तर ... अपने लिये में उर रह हैं ? उचत काए में वहा सड। रहेगा | গা के वध के लिपे मेरा जन्म हुछ | आकार नी ग्य न हो| शंकर ने यथय को कनी वर दिया था ? (व्थंग में) विश्वणयी बनने की भर्र ? ही .€। . «है. . .१/त और आपात का विचार भगवान्‌ शंकर भी भूल भये ? अमेन सौध र रली है मेरी . आर ५.९ €^ आ ९. है ? 481৬ आप हैं न? जन्म, पीत ५ मेरा आपकी सि रक्ते देते | पर कमी छी नही / भीप्य का, दणु 10 ৭ का आंध्रंक 71 आपकी सांस में ও২/৩ধ এশা? रह। अब इस जयद्रय का भय आपके रक्‍त का रंच वद्य कर पीए। फर रह। है | पल भर % भी वहं लभय कनं आय! जब आप निर रहे ? घर्में क। राजा धरती क। रज। चहाँ हो पषोष। 1 चा ना -.हो नहीं सकता এছ | आप दिच भर शी भच्नरण। शिविर में अपने पेनापतियों के (थ दोनों ह।थ चॉधकर ननन कर, नीद आने लगे चु५५।५ थह लेट जाइ्वेथ। | म्न हं . ছা . तपेन ও দহ उज्ञुसी रुलकर जुप रहने का অল কষা ই) सीमेव सन्‌ क सिहत नहीं धुन रहे हो तुम ? ठुरूहरे केर्च र्‌ सनद्‌




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