अश्क की श्रेष्ठ कहानियाँ | Ashk Ki Shresth Kahaniyan

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Ashk Ki Shresth Kahaniyan  by Upendranath Ashk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हा न जा हनन कि न ना कस तलाक १” मिरीह 1 कया मासूम कि बहू एक दन्त सापनहीन गरीदर्मददूर की बेटी । है; जिसे लिए श्रीदना तो 7 रही; डाची बी कहूरनी करना मी भ्पराध है रसी * हंसी हसकर डर ने उसे भ्पनी गोद में से. लिया भोर प्वोस!, 7 रज्डो, दू तो दी है से सामी । उस दिन समझी र-सास प्रपनी साहनी झपनी छोटी लड़की को शपने मांगे मशदूर में के लिए इसी काद में भाये' ये । तभी 'रशिया के मन में ची पर सवार होने की प्रबल माकाक्षा पदा हो उठी थी शोर उसी इन से घ(कर दी रही-सही सुर्ती भी दूर हो गई थी । उसने रशिया को टाल तो दिया था, पर सम-ही-सड उमने प्रतिज्ञा र ली थी हि वह भ्रवदप रशिया के लिए शक ' है।ची मोल तेगा । उसी इलाके में, जहाँ उप्तकी भ्राय की प्रोसत भास-भर मैं तीन पाने रोजाना भी न होती थी, धव श्राथ-दस घानि की हो गई । दूए+ दूर के गाँवों में झव वह मजदूरी करता । सटाई के दिनों मे बह दिन रात काम करता--फंसल काटना, दाने निवयलता, खालेहागो में प्रलाज भरता, नीरा डालकर भूसे के कुप बनाता ! बहू विजाई के दिनों मैं हत चलाना, बयारियीँ बनाता, दिजाई करता । उन दिनों उसे पाँच अ्राते से लेकर झाठ झानि रोदाना तक मजदूरी मिल जाती । जबं कोई वाम न हीना सो प्रात: उठकर झाठ कोस वौ मजिल मारकर मंडी जा पहुंचता भौर झाठ-देस घाति की सयंदूरी करके ही घर लोटता । उन दिनों बह रोज छा झाना दचासा था रहा था । इस मियम में उसने तरह की ढील ने होने दी थी । उसे जेसे उन्माद-सा हो गया था । बहने कहती, “वाऊर, श्र तो सुम बिसकुल ही बदल गए हो, पहले दो तुमने कमी ऐसी मेहनत से की थी ।”” का ' बाकर हसता श्रोर/कहूता, “तुम घाहली हो, में उमर-भर मिंठल्ला दनारहूं १ धर के : बहन कहती, 'निटलता चनते को: तो मैं नट्टी कहती, पर सेहत गवां- करें-रुपयी जेगा की सलाह नमी मै नहीं।दे सकती /” , + डे नहला नी न दि




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