प्रवचन - पीयूष | Pravchan Piush
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सबको अपने समान जानो !
श्री सुविधि जिनेश्वर वदिये हो « «
शानावरणीय हो, दर्शनावरणीय हो, अन्तराय कियो अन्त ।
ज्ञान दर्शश वल ये तिहू हो, प्रकट्या अनन्तानन्त ॥॥
प्रभु के चरणो मे बन्दन का फल अनन्त आत्मिक शक्तियों की उप-
लव्धि के रूप मे बताया गया है । जब शुद्ध श्रन्त करणपूर्वक कर्म मेल को धोने
का लक्ष्य वनाकर वन्दन किया जाता हूँ तो वैसे वन्दन के फलस्वरूप आत्म-
शक्तियो कौ ठके हुए घने वादलो के ममान ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय एवं
प्रन्तराय कर्मो का झ्रावरण छिन्न-भिन्न होने लगता ই तथा ग्रनन्त-ग्रनन्त
श्रात्मिक शक्तियो का विकास एव प्रारम्भ हौ জানা ই ।
सच्चे ज्ञान को दवाने वाले ज्ञानावरणीय एव दशनादरणीय कफम
ज्ञानावरणीय एव दणनावरणीय ये दोनों कर्म आत्मा को सच्चा
ज्ञान नही होने देते । इन दोनो कर्मो के वन्धन का कारण एक ही है, किन्तु
फल कुछ विलग सा होता है । चानावरणीय कर्म प्रात्मा के विशेष ज्ञान को
भ्राच्छादित करता है तो दर्शनावरणीय कर्म आत्मा के सामान्य ज्ञान को दवा
देता है ।
किसी भी परिस्थिति में पहले सामान्य ज्ञान होता है और फिर उसी
से सम्बन्धित विशिष्ट ज्ञान की अनुभूति होती है । एक मनृप्य है, यह सामान्य
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