सूरसागर | Sursagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
1020
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दशम स्कघ ८६७
सुद्र स्याम कमल-दल-लोचनः, तुम श्रव दोह सहाई
ऐसी बात कहां इन अगे, मेरी पत्ति जनि जाई ॥
तव इक वुद्धि रची मनहीं सन, अति आनंद हुलास |
सूर स्याम राधा-श्राधा-तनः कीन्हौ वुद्धि.प्रकास ॥
1१७६८॥२३८६॥
राय यूजरी
राधा चलहु भवनहिं जाहि।
कवि की हम जमुुन ई“ कर्हि अरू पछिताहि॥
कियो दरसन स्याम कौ ठुम, चलौगी की नाहिं।
बहुरि मिलिहो चीन्हि राखहु, कहत, सब मुसुकाहि ॥
हम चली घर तुमहुँ आवहु, सोच भयौ मन माहि।
सूर राधा सहित गोपी चली ब्रञ-समुद्दाहि।॥
॥१७६९॥२३८७॥
राग बिलावल
कहि राधा हरि कैसे दै ।
तेर मन भाए की नाही, की सुंदर, की नेसे हैं॥
की पुनि हमहि दुराव करौगी, की कटौ वै जैसेदै।
की हम तुमसौ कति रदी ज्यौ संच कौ की तैसे दै ॥
नटवर-वेष काछनी काछे, अंगनि रति-पतिन्से से हैँ।
सूर स्याम तुम नीकैः देखे, हम जानत हरि ऐसे हैं।॥
॥ १७७०।२३८८॥
राय विज्ञाक्ल
राधा मन में यहे विचारति |
ये सत्र मेर ख्याल परी दैः श्रव वातनि ठै निरूवारति ॥
मोह तँ ये चतुर कदावति, ये मनँ मन मोको লাহলি।
रेसे वचन कौशी इन स, चतुराई इनको भै হবি ||
जाकै-तंद-नेदन सिर सप्रथ, वार-वार तन-पन-घन वारति ।
सूर स्याम $` गवं राधिका, सधं काहू तन न निदारति ॥
11९७७१।।२३८९
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