कुछ आत्म कथाएं | Kuch Atmkathayen

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Kuch Atmkathayen by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महात्मा गाँधी ११ किया, परन्तु स्कूल में कही धर्म-शिक्षा नभिली। जो चीज शिक्षकों के पास से सहज ही मिलनी चाहिए, वह न मिलती । फिर भी वायु-मण्डल सें से तो कुछ-न-कुछ धर्स-प्रेरणा मिला करती थी | बहाँ धर्म का व्यापक अथ करना चाहिए । धमं से मरा अभिप्राय है आत्म-साक्षात्कार से, आत्म-ज्नान से । वेष्णव-सम्प्रदाय में जन्म होने के कारण वारबार “हवेली? जाना होता था । परन्तु उसके श्रति श्रद्धा न उत्पन्न हुई ! हवेली का वैभव सुमे पसन्द न आया । दवेलियों मे दने बलति अना- चारों की बातें सुन-छुन कर मेरा मन उनके सम्बन्ध में उदासीन हो गया । वहाँ से मुझे कुछ धर्म-प्रेरणा न मिली । परन्तु जो चीज मुके हवेली से न मिली, वद्‌ पनी दाक पास से मिली | वह्‌ हमारे ऊटुम्ब मे पुरानी नौकरानी थी । उसका प्रेम सुमे आज भी याद्‌ आता है । में पहले कहद्द चुका हूँ कि मे भूत-प्रेत से डरा करता था। रस्मा ने मुझे बताया कि इसकी दवा राम नाम है। राम नास की अपेक्षा र॒स्सा पर मेरी अधिक श्रद्धा थी। इसलिए बचपन में मेंने भूत-प्रेतादि से बचने के लिए राम-नाम का जप शुरू किया । यह्‌ सिलसिला यां वहत दिनि त्क जारी न रहा: परन्तु बचपन में जो बीजारोपण हुथ्ग वह्‌ व्यथं न गया | राम-नाम जो आज मरे लिए असोष-शक्ति हो गया है, उसका कारण वह रन्मावाई का वोधा हुआ चीज ही है।




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