कुछ आत्म कथाएं | Kuch Atmkathayen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महात्मा गाँधी ११
किया, परन्तु स्कूल में कही धर्म-शिक्षा नभिली। जो चीज
शिक्षकों के पास से सहज ही मिलनी चाहिए, वह न मिलती । फिर
भी वायु-मण्डल सें से तो कुछ-न-कुछ धर्स-प्रेरणा मिला करती
थी | बहाँ धर्म का व्यापक अथ करना चाहिए । धमं से मरा
अभिप्राय है आत्म-साक्षात्कार से, आत्म-ज्नान से ।
वेष्णव-सम्प्रदाय में जन्म होने के कारण वारबार “हवेली?
जाना होता था । परन्तु उसके श्रति श्रद्धा न उत्पन्न हुई ! हवेली
का वैभव सुमे पसन्द न आया । दवेलियों मे दने बलति अना-
चारों की बातें सुन-छुन कर मेरा मन उनके सम्बन्ध में उदासीन
हो गया । वहाँ से मुझे कुछ धर्म-प्रेरणा न मिली ।
परन्तु जो चीज मुके हवेली से न मिली, वद् पनी दाक
पास से मिली | वह् हमारे ऊटुम्ब मे पुरानी नौकरानी थी ।
उसका प्रेम सुमे आज भी याद् आता है । में पहले कहद्द चुका
हूँ कि मे भूत-प्रेत से डरा करता था। रस्मा ने मुझे बताया कि
इसकी दवा राम नाम है। राम नास की अपेक्षा र॒स्सा पर मेरी
अधिक श्रद्धा थी। इसलिए बचपन में मेंने भूत-प्रेतादि से बचने
के लिए राम-नाम का जप शुरू किया । यह् सिलसिला यां वहत
दिनि त्क जारी न रहा: परन्तु बचपन में जो बीजारोपण हुथ्ग
वह् व्यथं न गया | राम-नाम जो आज मरे लिए असोष-शक्ति
हो गया है, उसका कारण वह रन्मावाई का वोधा हुआ
चीज ही है।
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