नागरीप्रचारिगी पत्रिका | Nagripracharigi Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
271
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पदमावत के कुछ विशेष स्थकछ १६१
चार रंग की सोलह गोटों में प्रत्येक रंग की चार-चार गोटें होती हैं।
काछी-पीली गोटों का जोड़ा और लाल-हसै गोदो का जोडा प्रायः साना जाता है ।
जब चार व्यक्ति खेलते हैं, तो काली-पीली वाले आमने-सामने बेठते हैं ओर एक
दूसरे के 'गुइयाँ” होते हैं । इसी प्रकार लाल-हरी गोदों के भी । गुइयाँ एक दूसरे की
गोटें नहीं मारते बल्कि एक की चार गोटे पदले पुग जाने पर गुहया अपना दोव
साथी को दे देवा है, तब बे दुपांसिया' अयौत् दोनों पांसो का सामा करके खेलनेषाज
कहे जाते हैं | |
चौपड़ का खेल दो प्रकार का है- सादा, जिसमें चारः व्यक्ति खेलते हैं, और
रंगबाजी-- जिसमे दो व्यक्ति, प्रायः खी और पुरुष खेलते टँ । रंगवाजी का खेल कटिन
है और उसमें प्रतिबंध अधिक है । जायसी मे यहाँ रंगबाजी के खेल का ही बैन
किया है ।
टिप्पणो--( १ ) सारि>गोट, सं० शारि। पॉसा-सं० पाशक, हाथीदाँत के
विंदीदार चौपहल शकरपारेनुमा लंबे तीन टुकड़े ।
(२) कच्चे बारह-६+५+१। इस दाँव में एक गोट केबल बारह घर
चलती है। पक्के बारह-५+५+ २ । इसमें दो गोटे एक साथ दस घर रौर फिर
दो घर चलती हैं ।
(३) रहे न श्राठ अठारह भाखा--चौपड़ के खिलाड़ियों के विषय में प्रसिद्ध
हे 'चोपड़ के चार लवार!। खिलाड़ी “चार बुलाए चौदह आए! कददकर पाँच
के दाँव को पंद्रह ओर आठ को अठारह कहकर भूठ बोलते हैं। उसी पर जायसी
का कथन हे कि आठ तो आवें नहीं कट्टे अठारह | জীব सतरह-ऊपर दिए हुए
ब्योरे के अनुसार ये दोनों बड़े दाँव हैं; जब पड़ते हैं. तब खिलाड़ी की रक्षा करते हैं।
(४ ) सतएँ ढरें-चौपड़ के खिलाड़ी सात (१+१-+५ ) के दाँव को अशुभ
मानते हैं। कहा हे--हारी बाजी जानिए परे पाँच दों सात ॥ और भी--सत्ता सार
न ऊपजे, वेश्या होय न रॉड़ ( अर्थात् सात के पाँसे से कुक काम नहीं बनता )।
खेलनिद्दारा-खेलने में हर गया । इग्यारह-५ +५+९ का दाँव । इसमें जुग गोट
दस घर चलेगी । जासि न मारा-रंगबाजी के खेल भें जुग गोदे (एक घर में एक
साथ रखी हुई दो गोटें जुग कहलाती हैं श्लोर साथ चली जाती हैं ) नहीं मारी जा
सकतीं और उनके घर में अन्य गोट नहीं घुस सकती ।
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