सेतुबन्ध | Setubandh

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Setubandh by रघुवंश - Raghuvansh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर सेनुषन्धे का प्रभाव सब पर भिन्न-भिन्न प्रकार का पड़ता हे (६७-४०) । अस्त और आकुल बानरों का विश्वल' नेत-समह हनूमान पर पड़ा (४३ ४५) | और बे अपने आपकी किसी-किसी प्रकार दाढ़्न चंचा रद (८६, 1 तृतीय श्राश्वास : समुद्र किस अकार लाबा जाय इस भावना से सिम्तित बानरों का सम्बोधित कश्के सुत्रीब से ओजस्यों भाण्ण दिया, जिसमें राम को शक्ति, अपनी प्रतिज्ञा तथा सैनिकों के वीर धरम की भावना से बानर-सैन्य को उत्साहित करना चाद्या (६ ४०) । पर इस बीर-बाणी से भी कीचड़ में फंसे हाथी के समान जब सेन्य-दल सरह {हला লল সুসান ने पुन कहना प्रारम्भ किया (५१-४२)। इस बार सुग्रीय ने आग्भात्साह़ व्यक्ते कर्क भना क्रो उत्साहित करना चाहा (४३-६३। ) चतुथं श्र्वास : स्री क वचनां म निश्च'ट सेना পাগল কই श्रीर्‌ उमम लेकाभिप्रान का रन्साह तपाल ह गया (१ ६) । बानर मैन्य मे देल्लाय श्रा भवा | ऋरप्रमेन कल्यः रमये दषु पवनम को चत कर दिया, मील रोसाचित हुए, ऋुगद से हास किया, मेन्द ने आानस्दो কলা से নল নুহ কটা স্টীল दिया, शर्म घनथोर भजन करने लगा, द्विविद की दृष्टि शीतल हुई. निपरप् के मुस्ब पर कीथ की लाली लेक श्रः मूषे का मुखमण्डल हास से भयानक हो गया, ऋगद ने उत्साह व्यन्त किया, पर हनूमान शान्त ह (३-१३) | अवने बचनों का प्रभाव देखकर सुग्रीव हंस रहे है, राम-लच्मण शाबण सहित साशर को तरस समक कर्‌ नही हँसते; गम से केवल पुरीत कौ दस्रः (१४-१६) | दद जाम्बवान ने हाथ उठाकर वानम्‌ को शान्त करल दुष्‌ शौर संग्रीय की ओर देखते हुए कहता आरमस्म किया (१७ १६)। দন আবমল ছা श्राधार पर जाम्बान्‌ ने शिक्षा दी कि अनुफ्य॒ुक्त काम में नियोजित उत्ताह उचित नहीं, जल्दबाजी करना ठीक नहीं (२०-३६) | गुना शम की और न्यु हकर उन्न कषा कि तुम्हार बिधय में सप्ृद्र क्‍या करेगा (३७-४१) । इस पर राम ने कहा कि इस किंकत्तव्यविम्‌दता की स्थिति में कार्य की हुरी सुत्रीव पर ही अवलबग्बित दै 1 पुनः उन्होंने पस्वाव'




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