अष्ट खान की वार्ता | Ashtakhaan Ki Vaartaa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
चकारादन्ये हरिणाद्यश्च लीलाथं ग्रद्वीता श्वानों वा |--स॒०
यह प्रसंग श्रीकृष्ण के ग्वालरूप से संबंधित है । श्रीकृष्ण जब
गाय, भेंस और अजा चराने को जाते थे, तब साथ में श्वान आदि
को क्रीडार्थ रखते थे | आंज भी ग्वाले इसी प्रकार से बन में जाते हुए
दिखाई देते है । इसी ग्वाल रूपका परमानंददास ने इस पद में दशन
कराया है । ॥ “
देल कौन मन राखि सकैरीः यई पद संञ १६ श्रीमद्भागवत
के १०-२६ के कारत्यंगते कल पदायृतः का भावानुसरण ই ।
यमनाएक का अनुसरण-'गंगा तीन लोक उद्धारकःसं० १७ यह
पद कीतेन की पुस्तकों मे प्रकाशित हो चुका दै । इसका 'परमनंददासः
स्वामिनी के संगम आपुन भदे सकारथः ₹ल्लेख चायं जी कृत
य म॒नाष्टक के--
ध्यया चरणपद्यजा मुररिपोः प्रियं भावुका ।
समागमन ततोऽभवत् सकल सिद्धिदा सेविताम् ।
इस कथन के अनुसरण रूप है ।
पुष्टिप्राग का स्वरूप सचक-यह पद् सं १८ कीतन-
रनाकर आदि सम्प्रदाय की प्रत्येक पुस्तक में प्रकाशित होचुका है।
इसमें विधि-निषेध से पर ऐसा शुद्ध प्रेम रूप पुष्ठिमाय का वणुन है ।
प्रत्यक्ष विरह॒ सचक--यह पद ( सं० १६ ) गन भाई बहादर
पुर वाले के संग्रह में से लिया गया है । इसमे शुद्ध पुष्टि की तन्मय
मवस्था का व्रणेन है।
पुष्टिमार्गीय विश्वास, श्नुग्रह भक्ति त्था अनुग्रह महिमा सूचक-
ये सब पद् सं० २० से २२ प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें पुष्टि भक्ति का
स्वरूप प्रदर्शित किया गया है।
यमुना पार उतरन की उत्सुकता सखूचक--यह पद् सं० २३
छुगनभाई के संग्रह में से लिया गया है । इसमें अडेल से गोकुल आने
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