अष्ट खान की वार्ता | Ashtakhaan Ki Vaartaa

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Ashtakhaan Ki Vaartaa by द्वारका दास पारीख - Dwarka Das Parikh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) चकारादन्ये हरिणाद्यश्च लीलाथं ग्रद्वीता श्वानों वा |--स॒० यह प्रसंग श्रीकृष्ण के ग्वालरूप से संबंधित है । श्रीकृष्ण जब गाय, भेंस और अजा चराने को जाते थे, तब साथ में श्वान आदि को क्रीडार्थ रखते थे | आंज भी ग्वाले इसी प्रकार से बन में जाते हुए दिखाई देते है । इसी ग्वाल रूपका परमानंददास ने इस पद में दशन कराया है । ॥ “ देल कौन मन राखि सकैरीः यई पद संञ १६ श्रीमद्भागवत के १०-२६ के कारत्यंगते कल पदायृतः का भावानुसरण ই । यमनाएक का अनुसरण-'गंगा तीन लोक उद्धारकःसं० १७ यह पद कीतेन की पुस्तकों मे प्रकाशित हो चुका दै । इसका 'परमनंददासः स्वामिनी के संगम आपुन भदे सकारथः ₹ल्लेख चायं जी कृत य म॒नाष्टक के-- ध्यया चरणपद्यजा मुररिपोः प्रियं भावुका । समागमन ततोऽभवत्‌ सकल सिद्धिदा सेविताम्‌ । इस कथन के अनुसरण रूप है । पुष्टिप्राग का स्वरूप सचक-यह पद्‌ सं १८ कीतन- रनाकर आदि सम्प्रदाय की प्रत्येक पुस्तक में प्रकाशित होचुका है। इसमें विधि-निषेध से पर ऐसा शुद्ध प्रेम रूप पुष्ठिमाय का वणुन है । प्रत्यक्ष विरह॒ सचक--यह पद ( सं० १६ ) गन भाई बहादर पुर वाले के संग्रह में से लिया गया है । इसमे शुद्ध पुष्टि की तन्मय मवस्था का व्रणेन है। पुष्टिमार्गीय विश्वास, श्नुग्रह भक्ति त्था अनुग्रह महिमा सूचक- ये सब पद्‌ सं० २० से २२ प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें पुष्टि भक्ति का स्वरूप प्रदर्शित किया गया है। यमुना पार उतरन की उत्सुकता सखूचक--यह पद्‌ सं० २३ छुगनभाई के संग्रह में से लिया गया है । इसमें अडेल से गोकुल आने




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