श्री ललित विस्तरा | Shri Lalit Vistara

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Shri Lalit Vistara by मुनिचंद्र सूरीश्वर - Munichandra Soorishvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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; ललितविस्तरा - विषयसूचि : श पृष्ठ विषय १ मंगलाचरणङ्कि मन्थ का मोक्षमार्ग से संबंध २ ललित विस्तरा, जिका, “अनुयोग के प्रकार द्रव्यानुयोग आदि ই 'लतित विस्तरा' से प्रतिबुद्ध सिद्धषि गणिका हृष्टांत ४ ग्रन्थविवरण के ३ साधन# मज़लादि अनुबन्ध चतुष्टय, चस्तु के दो स्वरूप (१) सामान्य (२) विशेष ५ 'जिनोत्तम'@& संम्पूणे-आंशिक व्याख्याक्कि गम ओर पर्यायङ्क अनुवृत्तिपर्याय श्रौर व्याध ज्जिपयाय ६ 'कौन? शब्द के भिन्न भिन्न श्रथं ८ अनुबंध चतुष्टय ६ चैत्यवंदन की निष्फरता-सफलता की चच ११-१२ चैत्यवंदन-सम्यकूकरण के चार हेतु १३ धर्माधिकारी के ३ लक्तणः (१) अर्थी, (२) समथ ओर & (२) शास्त्र से अनिषिद्ध १४ धर्माधिकारी कौन हो सकता है ? धमेका (२) विधि-तत्परता & (२) उचितव्ृत्ति-तीन लक्षणों का उपन्यास क्रम १४ ओऔचित्य, ऐहिक, पारलोकिक १६ अधिकारी के तीन लक्षणों के बाह्य १४५ चिह्न १६ धर्मबहुमान के ५ लिग- कलैधमंकथाप्रीति, क्किघमे-निन्दा-सश्रवण'क्किथमनिन्दकच्नुकंपा, धर्म में चित्तस्थापन, && उच्च धमनिज्ञासा १७ विधिपरता के ५ लिग-- रुरु विनय, @ उचित कालपेशक्षा, @ उचितमुद्रा, @युकत- हके उपयोग १५ उचित वृत्ति के ४ लिग- लोकप्रियता, अनिन्य क्रिया, संकट में पेये, @्ियथाशक्ति दान, @लदय का ध्यान १८ अनधिकारी को देने में हानि १९ जिज्ञासा का मह पृष्ठ विषय २० अपवाद सच्चा कोन ? २१ ६ कत्तेव्य-- कछ्लिक्षद्ों की प्रवृत्ति की उपेक्षा @प्रवचन-गां मीर्यगवेषण, @इतरदरेन स्थिति की जांच, जेन ददोन वैशिष्ट्य निरीन्ञण, উন হুহাল ঈ इतरसमावेश, @महापुरष- चरित्रालम्बन २२ जैनदशैन की विशेषताएँ,-किगांभीय, क्किति विधपरीक्षात्तीणेता, २३ नित्य ही परिवतेनसदिष्ु, विलक्षण नित्या- नित्यत्व २४ इतरमें कृतनाशादि दोष, @ जेनदशेन में इतर- समावेश होते हुए भी दोष क्यों नहीं ! २६ जेनदशेन का इतर दशेनमें असमावेश अपुनबंधक जीव के ३ लक्षण जिनप्रबचनमूल्यांकन हेतुः ३ सिंहनाद सी शुद्ध देशना २७ बुद्धिभेद, सत्वनाश, दीनता, महामोहवृद्धि, क्रियात्याग संसाररसिकों की श्रवणु-अयोग्यता २८ चेत्यवंदन-पुवेविधि २६ अहेद्वंदन पर भावना 'नमोत्थुणं' सुत्र का पाठ ३० प्रणिपातदंडक सूत्र का अथे ३१ नो सम्पदाएं ३२ बस्तु बस्तुत: अनंत धमात्मक है, यह्‌ संपदा से सिद्ध ३३ व्याख्या के ६ लक्षण-(१) संहिता, (२) पद, (३) पदार्थ, (४) पद्विग्रह, (১) चालना, (६) प्रत्यवस्थान ३४ पूजा क्या है ? अरहंतका अर्थ ३४ व्याख्या के सात अंग:-(१) जिज्ञासा




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