हिंदी और प्रादेशिक भाषाओं का वैज्ञानिक इतहास | Hindi Aur Pradeshik Bhashvo Ka Vagynik Etihas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi Aur Pradeshik Bhashvo Ka Vagynik Etihas by शमशेरसिंह नरूला shamshersingh narula

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शमशेरसिंह नरूला shamshersingh narula

Add Infomation Aboutshamshersingh narula

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
৫০ हिन्दी जर प्रादेशिक भाषाओं का वेज्ञानिक इतिहास “वास्तव में विस्तारपुर्वक तुलना से यह स्पष्ट हो जाता है कि शभ्रादि भारोपीय भाषा जिसकी हम (सामान्य धातुओ की खोज करके) कल्पना कर सके हे, विभिन्न बोलियो मेँ पुरी तरह विभक्त थी श्राद्य-भारोपीय' को कल्पना बहुत सी सम्बन्धित बोलियो के समूह के रूप मे की जानी चाहिए जो कि यूरोप में एक विशाल भूभाग में फेली हुई थी । ये बोलियाँ श्रार्यो के वहाँ से स्थाना- न्तरण के पुर्वेकाल में ही विभिन्‍त भाषाओं का रूप घा रण कर चुकी थी ।”* अपने आदि निवास-स्थान में भारोपीय गरान्गोत्रो या कबीलो की एक ही मातृभाषा होने का सिद्धान्त कितना निराधार है, इसकी कल्पना इससे हो सकती है कि सभ्यता के उस प्रारम्भकाल में भाषाएँ कम होने की बजाय नित्य बढती रहती थी । उत्पादन के साधन भ्रति दरिद्र श्रौर श्रक्रिचन होने के कारण किसी गण-गोत्र या युथ के सदस्यो की सख्या कौ एक सीमा थी जिसके भीतर रहकर ही वे सब उत्पादन के सामूहिक कार्यो में सम्मिलित हो सकते थे । सदस्य-सख्या उससे बढ़ जाते पर उस गण गोश्च के एक भाग को स्थानान्त- रण करना पडता । वाहनीय उपकरण और कुछ ढोर-डगर ले वे नई चरा- गाहो की तलाश में निकल पडते शोर दूर जाकर नया गण बना जब वह कही अधिवास करते तो उनकी भाषा भी मूल भाषा से विच्छिद होकर शीघ्र ही नया रूप धारण करने लग जाती । श्रीपाद श्रमृत डाँगे ने वेदिक साहित्य के भ्रध्ययन से अनुमान लगाया है कि श्रादि गरण-गोत्रो की सख्या ५०० सदस्यो से अधिक होना सम्भव नही ।* प्राचीनतर भारोपीय गरा-गोत्र, जिनके एक मूल निवास- स्थान में रहने की कल्पना की जाती है, इससे भी छोटे-छोटे होगे । इस सम्बन्ध मे एफ० एगल्स लिखते ह, “कबीलो प्रौर उनकी उपभाषाभ्रो का प्रसार वस्तुत साथ-साथ होता है । अभी कुछ समय पहले तक विभाजन द्वारा नये-नये कबीलो और उपभाषाप्रो की उत्पत्ति भ्रमरीका में हुई है--भौर शायद श्राज भी यह निर्माण एकदम रुक नहीं गया । जब दो दुर्बंल कबीले आपस में मिलकर एक होते है तो अपवाद स्वरूप यह देखने में श्राता है कि निकट सम्बन्धी दो उपभाषाओ का प्रयोग एक ही कबीले में होता हे । साधारण रूप से इस समय अमरीका में कबीलो की सख्या २००० से कम नही * 173 भारोपीय जन जहाँ कही भी गये उनकी भाषा विभिन्‍न कबीलो की भाषा में बंटी हुई थी। बोगाज क्थोई के पुरा-लेखो मे छं विभिन्न माषाश्रो का १ टी० बरों हिस्टरी आव दो संस्कृत लेग्वेज । २- श्रीपाद अमृत डागे “भारत आदिम साम्यवाद से दास प्रथा तक का इतिहासः ३ एफ ऐंगल्स परिवार की उत्पत्ति ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now