घनआनंद | Ghananad
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47 MB
कुल पष्ठ :
704
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
कोरे हों ऐसा भी नही है। “भूषण?” ने शिवाजी की प्रशंसा में 'शिवभूषण?” में की
सारी रचना वौररस में कौ, पर उनके बहुत से फुटकल छंद <ंगार के
भी मिलते है, ये “रीति? के पूरे कायदे-कानून के अनुसार निर्मित हैं। बहुत
सभव हे, उन्होने रस या नायिका भेद का कोई अंथ ही लिखा हो, पर अब न
मिलता हो। “भूषण उल्लास”, 'दृषण-उल्लास! ओर भूषण हजारा? नाम
से जो इनके अंथ जनश्रति में सुने जाते है वे वौररस के होंगे ऐसी संभा-
वना नहीं प्रतीत होती । उनके फुटकल श्छ'गार के हृद् इन्ही ग्रो के होगे, रतः
भूषण को यदि सारी रचना मिल जाय तो कदाचित् वे बाहुलय के विचार से
शः गार के हो कवि ठहरेंगे। शिवाजी के दरबार में पहुँचने से पूर्व वे कई दरबारो में
गए थे। उन्होंने वहों ऋगार की ही रचना से श्रीगणेश किया होगा। उनके
भाई चितामणि, मतिराम, जटाशकर भी तो श्टगार रस का ही चषक भरते रहे |
यदि रीतिकाल के समस्त ग्रथों कौ छान-बीन की जाय तो यह स्पष्ट हो जाता
है कि सभी प्रकार के अंथों मे श्गार तो किसी-न किसी रूप या परिमाण में
अधश्य मिल जाता है अर्थात् दूसरे रस का वर्णान करनेवाले भी श्छगार कां
वर्णन अवश्य करते थे, पर श्गार की अभिव्यक्ति करनेवाले बहुत से ऐसे
मिलेंगे जिन्होंने दूसरे रसोंका नाम भी नहीं लिया। नायक-नायिका भेद के
प्रथो की तो कोई बात ही नहीं, वे श्ट गार के ही प्रंथ हैं, शगार का आलबन-पक्त
हो सामने रखते हैं। नख-शिख के ग्रथ भी ऐसे ही हैं। षडऋतु के प्रथोमे
श्टगार काही उदहीपनं विभाव ज्तिया गया है। अल कार, शब्दशक्ति आर पिगलं
के भरथो मे सर्वं ्रधिक्रतर उदाहरण श्वगार के हैं। कुछ पिगल या श्रलक्रार
के ग्रथ एषे अवश्य हैं जिनमें आश्रयदाताओं के शौर्य कौ गाथा है। पर
(भूषणः के शशिवभूषणः या उसी प्रकार के दो-एक प्रंथों को छोड़कर ये ग्रथ
“टगार रस से शत्य हों, ऐसा नही है। भक्ति के अथ है तो भक्ति के हो, पर
वे ®ंगार-रदित हे, यह नदी कह सकते । काव्य-इृष्टि से उनमें राधा कृष्ण के शगार
कोक्थाहीतोहै। सूरदासः के 'सूरसागर, मँ गोपीङ्क्य का शगार है, इसे तो
मानना ही पढ़ेगा। वह लोकिकं श्टगार न सही, अलौकिक सद , परदहैतो
शगार সী । इस अकार रोति के अधिकाश अंथ तो ख्यार-प्रधान है ही, ओर
प्रंथ भी श्गार-संवलित हैं ।
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