शब्दों का जीवन | Shabdo Ka Jiwan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
131
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(मूलत गिलास “्लास' अर्थात् रीदे के होते थे), शीदा ( == जाइना, दीहो
से बनने के कारण) आदि अनेकं अन्य शब्द भी इस प्रकारके है ।
अन्धविश्वास
बहूत-से शब्द अन्धविश्वास के आधार पर जन्म लेते हँ । उदाहरण
के लिए अब तो हम जानते है कि चॉद का काला धब्बा उसकी सतह
पर के गडढे आदि है किन्तु प्राचीन भारतीयो मे यह अन्धविश्वास था कि
वह मृग या हिरन है। इसी आधार पर संस्कृत मे चाँद के लिए
'मृगाक' तथा “हरिणाक' (जिसके अंक या गोद मे मुग या हिरन हो)
शब्दों का प्रयोग हुआ है। ऐसे ही लोगो का विश्वास है कि कौवे के एक
आँख होती है। वही भाँख कभी एक अक्षगोलक में आ जाती है तो कभी
दूसरे मे । इसी आधार पर सस्कृत मे 'कौवा' के लिए एक शब्द एकाक्ष
प्रयुक्त होता है ।
अशोक (वृक्ष) के लिए सस्कृत मे एक शब्द आता है वामाप्नरिघातन'
जिसका शब्दार्थं है “युवती (वामा) के चरण (अचि) सेमारा जाने
নালা? । पुराना अन्धविदवास है किं युवती जब अशोक वृक्ष को अपने
पैरो से मारती है तो वह प्रुष्पित हो उठता है। इसी प्रकार लोगो का
विश्वास है कि चातक केवल स्वाति नक्षत्र मे बरसनेवाले पानी का पान
करता है। इसी आधार पर “चातकः का एक पर्याय ्वातिजीवन' है।
उसके लिए एक दूसरा शब्द 'मेघजीवन” भी मिलता है जिसके पीछे भी
यही अन्धविश्वास है, अर्थात् चातक केवल स्वाति तक्षत् के बादल का
बरसा पानी ही पीता है।
एक पुराना अन्धविश्वास है कि स्वाती की बूँद ही सीप में गिरकर
मोती, साँप के मूह मे पडकर जहर तथा केले के पेड में कपूर बनती है।
इसी आधार पर “कपूर' के अन्य नाम 'घनसार' तथा 'सेघसार' है। चक्षु-
श्रवा (= स्प; जो आंख से सुने), सुधाकर (चांद; अमृत का भण्डार,
सुधानिधि, सुधारदिमि, अमृताशु आदि मी), तथा काकयाली ( == कोयल,
कह जाता है किं कोयल अपने अण्डे को कौए के घोसले मे रख आती है
तश्रा कौआ ही उसे सेता और पालता है; काकसुता भी) आदि शब्द भी
} चन्द्र जनमे हैं / १.६
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