रा मा नु ज | Ramanuj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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দু रामानुज आप यही चाहते हैं कि मुझे जोबन मे कभी सफलता न मिले, तो यही आज्ञा হু | १ विद्यार्थी : (हंसकर) जा जा, मूर्ख ! जैसे गुरुदेव तेरी सफलता से डरते हैं। .२ विद्यार्थी : गुरुदेव, यह अपने को समझता क्‍या हे! १ विद्यार्थी : (रामानुज से) बहुत दिन से आनद कर रहे थे, आज ज्ञात हो गया न !? समझे थे पाठशाला इन्हीं की है कि गुरुदेव कुछ रहे ही नही ! २ विद्यार्थी : अज्ञान का नाश हो, गुरुकृपा से नाश हो | यादवप्रकाश : ( विजय भाव से मुस्कराकर ) नाश तो हो गया वत्स | रामानुज : गुरुदेव मे जाता हूँ । परतु मेरे हृदय में क्रोध नहीं है, मै आज भी... यादवप्रकाश * वत्स इसे मेरी आँखो से दूर कर दो | १ विद्यार्थी : जाता है या नही ! २ विद्यार्थी : अरे यह तो घोर निल॑ज्ज हे [ रामानुज का प्रस्थान । सब अट्टहास करते हैं । ] दृश्य ३ [ प्रथ । रामानुज उदाससा खड़ा है । उसके साथ गोविन्द भट्ट ই। ] गोविन्द भट्ट : फिर क्‍या हुआ ?* रामानुज : गुरुदेव क्रोध से भर गये । उन्होंने मुझे निकाल दिया। गोबिन्द भट्ट : तुमने उन्हे सतुष्ट करने का यल नही किया ए रामानुज : मुझसे पूछो गोविन्द ! मैने क्‍या नहीं किया ? किंतु वे गुरु थे | उनको बोलने का अधिकार था, मुझको सुनने का। क्रोध एक बहुत भयानक अवस्था है, गोविंद जिसमें मनुष्य का युग-युग का सचित




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