रा मा नु ज | Ramanuj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
173
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)দু रामानुज
आप यही चाहते हैं कि मुझे जोबन मे कभी सफलता न मिले, तो यही
आज्ञा হু |
१ विद्यार्थी : (हंसकर) जा जा, मूर्ख ! जैसे गुरुदेव तेरी सफलता
से डरते हैं।
.२ विद्यार्थी : गुरुदेव, यह अपने को समझता क्या हे!
१ विद्यार्थी : (रामानुज से) बहुत दिन से आनद कर रहे थे, आज
ज्ञात हो गया न !? समझे थे पाठशाला इन्हीं की है कि गुरुदेव कुछ रहे
ही नही !
२ विद्यार्थी : अज्ञान का नाश हो, गुरुकृपा से नाश हो |
यादवप्रकाश : ( विजय भाव से मुस्कराकर ) नाश तो हो
गया वत्स |
रामानुज : गुरुदेव मे जाता हूँ । परतु मेरे हृदय में क्रोध नहीं है,
मै आज भी...
यादवप्रकाश * वत्स इसे मेरी आँखो से दूर कर दो |
१ विद्यार्थी : जाता है या नही !
२ विद्यार्थी : अरे यह तो घोर निल॑ज्ज हे
[ रामानुज का प्रस्थान । सब अट्टहास करते हैं । ]
दृश्य ३
[ प्रथ । रामानुज उदाससा खड़ा है । उसके साथ गोविन्द
भट्ट ই। ]
गोविन्द भट्ट : फिर क्या हुआ ?*
रामानुज : गुरुदेव क्रोध से भर गये । उन्होंने मुझे निकाल दिया।
गोबिन्द भट्ट : तुमने उन्हे सतुष्ट करने का यल नही किया ए
रामानुज : मुझसे पूछो गोविन्द ! मैने क्या नहीं किया ? किंतु वे
गुरु थे | उनको बोलने का अधिकार था, मुझको सुनने का। क्रोध एक
बहुत भयानक अवस्था है, गोविंद जिसमें मनुष्य का युग-युग का सचित
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