विहंगावलोकन | vihangavlokan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्ताहस्तान्तरण
गिरि, समुद्र, धरती, नाचै, लोक नाचे हँस-रोह ।
-- केंबीर
ज्योपिष्यिंसे भविष्य पूछनेकी आदत हम भारतवासियोंको पूर्वजोंकी देन है ।
` -भविष्यमे क्या गगा, यह जाननेकी जिज्ञासा राजनैतिक क्षेत्रमें भी दिखाई
पढ़ती है ।
हमारे आधुनिक इतिहासमें सौ-सौ वर्षोंमें कालांतर हुआ है, विद्वतापूवंक आज भी
. ऐसा कहनेवाले कम नहीं हैं | १७५७ सें प्लासीकी लड़ाई, इसके बाद १८४७ सें
विदेशी सत्ताके विरुद्ध पहली कांति हुईं और सौ वर्षों बाद भारत स्वतंत्र
होगा--अथीत् १६५७ में ! !
परन्तु इन भविष्य वक्ताओंकी गणनामें कहीं कुछ गलती ज़रूर हो गईं। हमे दस साल
पहल ही १६४७ मे स्वतंत्रता मिल गई । अतः ये १० वष हमारे इतिहासमें अत्यंत
महत्वपूर्ण हैं। इस अवधिकी घटनाओंका दूर॒गामी प्रभाव हुआ ।
सन् १६४७ के पहलेका काल बहुत ही उथल-पुथलका था । संसारके अत्यंत
प्रबल साम्राज्यवादकी हमने आव्हान दिया था । परन्तु हमारा आव्हान अहिंसात्मक
था, नेतिक सामर्थ्य और सत्याग्रहक्ता था। हमारे आरंभ किये हुए सत्याग्रहका
जोर धीरे-धीरे बढ़ता गया, उसमें किसानोंकी जाति थी, मजदूरोंका आन्दोलन
था। उपवास --' भूख हड़ताल” -जेल जाना -जेलसे छूटना आदि जारी था।
उस अभिनव “शस्त्र! का परिणाम व्यापक और चिरकालीन होनेवाला था।
उस समय हमारी निभेय भावना प्रकट हुईं । शौर्यकी विश्वास मिला । उसी कालमें
समभीतावादकी हमने स्वीकार किया, पीछे हटे और गङ्वड सचानेके कारणीभूत
हुए । इस गड़बड़ीमें दो बातें बिलकुल स्पष्ट हो गई ।
पहली : अंग्रेजोंके अत्याचारसे जनताका निश्चय हृढ़ हुआ ; विदेशी सत्ताका
मुकाबला करनेके लिए--ख्वराज्य प्राप्त करनेके लिए, लाखों लोग आन्दोलनमें
शामिल हुए ।
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