विहंगावलोकन | vihangavlokan

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vihangavlokan  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्ताहस्तान्तरण गिरि, समुद्र, धरती, नाचै, लोक नाचे हँस-रोह । -- केंबीर ज्योपिष्यिंसे भविष्य पूछनेकी आदत हम भारतवासियोंको पूर्वजोंकी देन है । ` -भविष्यमे क्या गगा, यह जाननेकी जिज्ञासा राजनैतिक क्षेत्रमें भी दिखाई पढ़ती है । हमारे आधुनिक इतिहासमें सौ-सौ वर्षोंमें कालांतर हुआ है, विद्वतापूवंक आज भी . ऐसा कहनेवाले कम नहीं हैं | १७५७ सें प्लासीकी लड़ाई, इसके बाद १८४७ सें विदेशी सत्ताके विरुद्ध पहली कांति हुईं और सौ वर्षों बाद भारत स्वतंत्र होगा--अथीत्‌ १६५७ में ! ! परन्तु इन भविष्य वक्ताओंकी गणनामें कहीं कुछ गलती ज़रूर हो गईं। हमे दस साल पहल ही १६४७ मे स्वतंत्रता मिल गई । अतः ये १० वष हमारे इतिहासमें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस अवधिकी घटनाओंका दूर॒गामी प्रभाव हुआ । सन्‌ १६४७ के पहलेका काल बहुत ही उथल-पुथलका था । संसारके अत्यंत प्रबल साम्राज्यवादकी हमने आव्हान दिया था । परन्तु हमारा आव्हान अहिंसात्मक था, नेतिक सामर्थ्य और सत्याग्रहक्ता था। हमारे आरंभ किये हुए सत्याग्रहका जोर धीरे-धीरे बढ़ता गया, उसमें किसानोंकी जाति थी, मजदूरोंका आन्दोलन था। उपवास --' भूख हड़ताल” -जेल जाना -जेलसे छूटना आदि जारी था। उस अभिनव “शस्त्र! का परिणाम व्यापक और चिरकालीन होनेवाला था। उस समय हमारी निभेय भावना प्रकट हुईं । शौर्यकी विश्वास मिला । उसी कालमें समभीतावादकी हमने स्वीकार किया, पीछे हटे और गङ्वड सचानेके कारणीभूत हुए । इस गड़बड़ीमें दो बातें बिलकुल स्पष्ट हो गई । पहली : अंग्रेजोंके अत्याचारसे जनताका निश्चय हृढ़ हुआ ; विदेशी सत्ताका मुकाबला करनेके लिए--ख्वराज्य प्राप्त करनेके लिए, लाखों लोग आन्दोलनमें शामिल हुए । 4




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