नारायण राव | Narayan Rav

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Book Image : नारायण राव  - Narayan Rav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० के रूप में राज्य का खूब विस्तार दिया ( कतिदिन्द के महात्म्‌ ने जय- पतिराज बे स्वासी-बार्र-निरदंद॒ण ने सन्नुप्ट होरर 'सहामस्त्री राजपशों- द्वोपक की उपाधि दी झौर उनको दो गांद भी दिये । इन वरह के उत्तम वश म खो राज लम्मो चुन्दर प्रसाद राव का जन हुम्ला घा। मद्चार द नूवन विदधान ऊपर त्ते उनका हृदय आलोजित घा। पास्चात्य विद्याओं में भी वें पारगत थे । उन्होंने सस्द्ृत में बी० ए० पाव किया था। प्रसिद्ध पटिता से उन्होने सम्झृत सीखी थी । उनको जमीदारो में क्सानों को कोई छष्ट न था । यह सोचकर বি নিন্য তলৰ দলা के भावों भारत का भाग्योदय नहों हो सकता, वे पुरानों शामन-समा भौर नई विधान-सभा के चुवाव में लड़े थे झोर बहुमत से सदस्य चुने गए थे 1 बे जलता के प्रतिनिधि थे । दे सरवार वो दगल में छुरी वो तरह थे । राजनोति में दे न्‍्यायपति सुब्दाराव पन्दुलु के प्रिय शिष्य थे | শী रामचन्द्र राज के प्रिय मित्र थे । उनका यह भी विश्वास न था कि गारखो के झमहयोग आन्दोलन मे देश में अराजकता फन जानो । इसलिए शासन- सभाभो में देश द्रोहियो को स्थान न देने में ही वे एक ऐसी देश-मेवा सम- झते भे जो वे स्वय कर मक्ते थे । शजाम के जिले के नारिकेलवलस के जमोदार कोविकडि वोरबसव- राज वरदेश्वर लिग्र ने झपनीं प्रथम पुत्री वरदबामेदवरों के साथ उनका विद्याह क्या १ उनके दो लडकियों और एवं लड़का था । उनकी पहनो लडकी शडन्तला देवो का विवाह, नेल्लूर जिले वे एक छोटेन्से जमीदार भावनारायण के लडके विश्वेश्वर राव से हुआ 1 कुमर विश्देश्वर राद बहुत घमडी थे । इगलेड जाकर प्राक्सफोर्ड में एम० ए० तक पडबर जब वे हिन्दुस्तान दापित आए तब उन्होने पहले- पहल डिप्यूटी तहसीलदार की नोकरी को थो। फिर घोरे-्घीरे सिफारिश बगेरह करवाकर वे डिप्यूटी कलक्टर बन गए | वे यह भूल गए कि वे जमीदार थे और अपने से बडे हाक्मों की झामद सशामद करने लगे 1 उनका बह विश्दास था कि अगर अग्रेज हिन्दुस्तान छोडकर चले गए तो यहाँ एक कोडा भो जिन्दा न रह सकेगा, भत्यन्त शस्य श्यामल सुन्दर भारत हिमालय ने कन्याकुमारी तक 'सहारा' का रेगिस्तान हो जायगा 1




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