भवभूति | Bhawbhuti
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. सतीशचन्द्र विद्याभूषण - Dr Satishchandra Vidyabhushan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)দঃ भवभूति
शतश प्रनज्या समयसुरुभावारविमुखः
प्रसष्तस्ते यः प्रमति पुलर्देदमपरम् ॥
(मालती-माघव, ४)
डे भगवत्ति, शिशु मालती के प्रति आपका जो स्नेह ट,
उसने आपके संसार से विरक्त चित्त को भी आदर कर दिया हे ।
इसीलिये आप प्रत्रस्याश्रम कन्तन्यो से मह मोडकर मालती के
लिये यत्न कर रही है 1
का्मद्की के कामों को देखने से साहझूस होता है कि उस
समय हिंदु-धर्म का प्यभ्युदय होना आरम हो गया था, बौद्ध
लोगों ने हिंदू देवी-देवताओं की पपासना आरंभ कर दी थी ।
सालतो-माघव के तीसरे अंक में लिखा है कि कामेदकीने मालती
की उसकी सोभाग्य-चूद्धि के निमिच चतुदंशी के दिन शिव की
पूज! करने के लिये फूल चुनने को सेज्ना था । वास्तव में यह बड़
समय था कि जब वौद्ध लोग इस बात का निश्चय नदरी कर सके
शेकि वे बौद्ध धर्म का अनुसरण करें या शैव धम्म फा। गौड-
देश के सुप्रसिद्ध फवि गामचंद्र फवि-भारती 'भक्तिशतक'-प्रेंथ फ्रे
प्रागंस में, बुद्ध को नभस्कार करेंया शिव को, इस घातका
निर्णय नहीं कर सके । पह लिखते हैं---
ज्ञानं पस्य समस्त रस्दुविपयं यस्यानवदय पथ.
यम्मिच् रागख्योऽपि शैव न पुनद्वेपो ने मोहस्सथा 1
মহা देतुरनन्वक्सप्वसुष्रद्र नस्पाङृपामप्पुरी
शुद्धो वा गिरिशोब्यवा स भगवगोस्नस्मै नमस्कुर्म )।
जिसे सव विपयों फा झ्ान है, जिसका वाक्य निर्दोष है,
जिममे राग, देय और स्तेह की एक ধৃত भी नहीं टै, जिसकी कृपा
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