भवभूति | Bhawbhuti

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Bhawbhuti by डॉ. सतीशचन्द्र विद्याभूषण - Dr Satishchandra Vidyabhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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দঃ भवभूति शतश प्रनज्या समयसुरुभावारविमुखः प्रसष्तस्ते यः प्रमति पुलर्देदमपरम्‌ ॥ (मालती-माघव, ४) डे भगवत्ति, शिशु मालती के प्रति आपका जो स्नेह ट, उसने आपके संसार से विरक्त चित्त को भी आदर कर दिया हे । इसीलिये आप प्रत्रस्याश्रम कन्तन्यो से मह मोडकर मालती के लिये यत्न कर रही है 1 का्मद्की के कामों को देखने से साहझूस होता है कि उस समय हिंदु-धर्म का प्यभ्युदय होना आरम हो गया था, बौद्ध लोगों ने हिंदू देवी-देवताओं की पपासना आरंभ कर दी थी । सालतो-माघव के तीसरे अंक में लिखा है कि कामेदकीने मालती की उसकी सोभाग्य-चूद्धि के निमिच चतुदंशी के दिन शिव की पूज! करने के लिये फूल चुनने को सेज्ना था । वास्तव में यह बड़ समय था कि जब वौद्ध लोग इस बात का निश्चय नदरी कर सके शेकि वे बौद्ध धर्म का अनुसरण करें या शैव धम्म फा। गौड- देश के सुप्रसिद्ध फवि गामचंद्र फवि-भारती 'भक्तिशतक'-प्रेंथ फ्रे प्रागंस में, बुद्ध को नभस्कार करेंया शिव को, इस घातका निर्णय नहीं कर सके । पह लिखते हैं--- ज्ञानं पस्य समस्त रस्दुविपयं यस्यानवदय पथ. यम्मिच्‌ रागख्योऽपि शैव न पुनद्वेपो ने मोहस्सथा 1 মহা देतुरनन्वक्सप्वसुष्रद्र नस्पाङृपामप्पुरी शुद्धो वा गिरिशोब्यवा स भगवगोस्नस्मै नमस्कुर्म )। जिसे सव विपयों फा झ्ान है, जिसका वाक्य निर्दोष है, जिममे राग, देय और स्तेह की एक ধৃত भी नहीं टै, जिसकी कृपा




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