श्री भागवत दर्शन | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 77 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
169
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११ )
मञ्जरी बहिना ! छत्रपति शिवाजी तो औरंगजेब के वारावास से
से निकल कर भाग गये।”
यह् सुनकर भ्राइचर्य के साथ शंभाजो ने पूछा--”पिताजो !
हम लोग रात्रि भर घोड़ों को दोड़ाते हुए चले हैं। शभ्रव
तक ५०-६० कोश चले आये हींगे। भौ तक तो देहली के
किले में भी किसी को हमारे भागने का सभाचार विदित
न हुआ होगा, इन द्ियों को हमारे भागने का पता कंसे
चर गया ?”
तब शिवाजी ने कहा-“भैया | हम जो भागने का विचार
कर रहे थे, वह विचार वायुमंडल में व्याप्त हो गया । वायु उसे
उड़ाकर यहाँ तक ले आयी । वायु मंडल ही विचारों को प्रसारित
करता है 1
इस वात का प्रत्यक्ष प्रमाण मुझे दृष्टि गोचर हुआ । मथुरा
वृन्दावन में हल्का हो गया, ब्रह्मचारी जी की मृत्यु हो गयी।
और सूर्येदिय के पूर्व ही लोगों का ताँता लग गया।
सूर्योदय हो गया, किस्तु मेरे शरोर की शुन्यत्ता घुटनों से
ऊपर न बढ़ी | घुटनों तक तो शरीर को कोई काट दे तो भी
पता नहीं चलता । घुटनों से ऊपर सम्पूर्ण शरोर में जीवन था,
में प्राद्सियों को पहिचानता था, हेस-हँसकर बातें करता था ।
किन्तु उस समय तो मुझे अनुमच नहीं हुआ, अब अनुभव करता
हूँ, कि इस अनशन का मेरे मस्तिष्क के ऊपर विपरीत সমান
पड़ा मस्तिष्क निर्बल वन गया, मैं अपने विचारों का सन्तुलन
खो बंठा। मस्तिष्क में चड़े-वड़े विचार उठने लगे। अब तक
तो मरने की हो बात सोचता रहता था। मृत्यु के स्वागत'के
ডি प्रस्तुत रहता। अब मस्तिष्क में अन्य हो भाव उठने
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৭2.
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