भा व ना यो ग | Bhavna Yog (1975) (sri Aanand Risi) Mlj 36

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : भा व ना यो ग  - Bhavna Yog (1975) (sri Aanand Risi) Mlj 36

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य श्री आनंद ऋषि - Aacharya Sri Aanand Rishi

Add Infomation AboutAacharya Sri Aanand Rishi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ष भावना योग : एक विश्लेषण विचारशीलता की दृष्टि से शुन्य है। तिय॑च गति में प्राणी विवेकहीन रहता है---तिरिया विवेगविकला तिर्यंच्र विवेक विकल-रहित होते है। उसमें बुद्धि, भावना, विचार और विवेक जैसी योग्य शक्ति नहीं होती । फिर मनुष्य-योनि ही एक ऐसी योनि है, मानव-जीवन ही ऐसा जीवन है, जिसमें विचार करने की क्षमता है, शक्ति है, विवेक व बुद्धि कौ स्फुरणा है, योग्यता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि विचार मनृष्य की विशिष्ट सम्पत्ति है ! विचार का अर्थ सिर्फ सोचना-भर नहीं है। पहले सोच, फिर विचार। यानी सोचने के आगे की भूमिका है विचार । भारत्‌ के चिन्तनभीन मनीपियों ने कहा हे-- कोऽहं कथमयं दोषः संसारास्थ उपागतः । न्यायेनेति परामर्शो विचार इति कथ्यते ॥ मैं कौन हैं ? मेरा कत्तंव्य যাই? मुझमें ये दोष क्यों आये ”? ससार की बासनाएँ मु में क्यों आई ? इन सब वातों का युक्ति पूर्वक परामशे, चिन्तन करना विचार है । इस प्रकार के विचार से संत्य-असत्य का, हिंत-अहित का परिज्ञान होता है और उससे आत्मा को विश्रान्ति-शान्ति मिलती है। कहा है-- विचाराद ज्ञायते तत्त्वं, तत्त्वाद्‌ विश्रान्तिरात्मनि 1* विचार और भावना विचार जब मन में बार-बार स्फुरित होने लगता है तब बह भावना का रूप धारण कर लेता है। नदी में जैसे लहर-पर-लहर उठने लगती है तो वे लहरे एक वेग कारूप धारण कर लेती है, उमी प्रकार पुन. पुनः उठता हुआ विचार जेब मन को अपने मस्कारोंसेप्रमावित करतादहैतो वहु मावनाका रूप धारण कर लेता है । विचार पूर्व रूप है, भावना उत्तर रूप। वैसे सुनने में बोलचाल में विचार, भावता एवं ध्यान समान अर्थ वाले शब्द प्रतीत होते है, किन्तु तीनों एक दूसरे के आगे-आगे बढने वाले चिम्तनात्मक सस्कार बनते जाते हैं, अतः तीनो के अर्थ में अन्तर है । विचार के बाद भावना, भावना के बाद ध्यान में अमन तल-लवीनीीी....-तननतनन नमन मनन न++कक न नम न - नमक न ++3»+3+७+>क+भ+पभ९»७७»७७>मन-वमक, जीवन निर्माण में विचार का जो महत्त्व है, वह चिन्तन एवं भावना के रूप में ही है। वाइबिल में कहा है--“मनृष्य वैसा ही बन जाता है, जैसे उसके विचार होते है! “विचार ही आचार का निर्माण करते हैं, मनृष्य को बनाते १. योगवाशिष्ट २।१४।५० २. कही, २।१४।५३




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now