जैनधर्म का इतिहास | Jain Dharam Ka Itihas Mlj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
555
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ ज्ैन-धर्म का इतिहास
बताये गये हैं जिन्हें आरा कहा जाता है। आरे के सहृश वह
वस्तु जगत् में परिवर्तन और विकर्तन करते हैं। एक बार काल
दुःख से सुख की ओर और दूसरी बार सुख से दुःख की ओर
अग्मसर होता है। क्रमशः उन्हें ही उतसर्पिणी और अवसर्पिणी
कहते हैं। इसे चित्र रूप में इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता
हैः-- /
जिस काल में भोतिक समृद्धि बिकास की ओर उन्मुख
होती है और जीवन सुखमय बनता जाता है उसे उत्सर्पिणी
ओर इसके विपरीत कारु को अवसर्पिणी कहते हैं। आत्म-
विकास का हास और विकास का सामूहिक क्रम मी इस काठ-
परम्परा से प्रभावित रहता है । भगवान् ऋषभदेव इस अव-
सर्पिणी काल के तीसरे आरे के अन्त म चैन्रकृष्ण अष्टमी को
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में उत्पन्न हुए थे ।
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