मरणकंडिका | Marankandika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
765
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १३ ]
प्रस्तुत मरणंकडिका (घ्राराधना) को अनुवादिका--
इस ग्रन्थ की चू कि पृथक् से टोका--अनुवाद भ्रभी तक कहीं से होकर प्रकाशित नही हुभा
अतः पूज्य १०५ झ्ा० जिनमतोजो ने लिखकर सकल भारतवर्षीय दिगम्बर जेन समाज का पा रमाथिक
उपकार किया है-यह बात अत्यन्त स्पष्ट & । यतः आजकल संस्कृत या प्राङ़ृत जेसी भाषाभों के
লালা লী रहे नहों, अतः पूज्या माताजी की यह सरल--प्रांजल श्नुब्राद--चन्द्रिका सर्वोपियोग योग्य
होगो ही ।
प्रेरणा के खोत--
इस ग्रन्थ के अनुवाद को प्रेरणा पृज्य षट्शधौषश प्राचायं अजितसागरजी ने मत वर्ष उनके
सलृम्बर- चातुर्मास के काल में दी । आचार्य श्री की स्वय की २० वषं पूवं को हस्तलिखित মহা
कंडिका भी है। भाचायं श्री ने इस हस्तलेक्नन के पर्व भी इस ग्रन्थ का प्राद्योपान्त अनेक बार स्वा
ध्याय किया था । भ्रापको यह भावना रहो थी कि इस ग्रम्थ का पृथक से भनुबाद होना चाहिए। इस
ग्रथ के आदि के १९ इलोक कही नही मिते! सोलाषुर तथा कलकत्ता के प्रकाशनों में भो उक्त प्रथम
१९ इलोक नहीं हैं। प्ज्य आचार्य श्री ने नागौर के भण्डार से इस ग्रन्थ की पूर्ण श्रति प्राप्त कर इन्हे
उतार लिए । जिसके कारण से अब यह ग्रन्थ पूरा अस्खलित छप रहा है, इस बात को खुशी है ।
श्राचाय श्री के भावों के अनुसार ग्रंथ के प्रन्त मे समाधिमरण से सम्बन्धित विभिन्न ग्रंथों के
लगभग १५० इलोक भी दिये गए हैं । इस प्रकार झ्राचाय॑ श्री को प्रेरणा से माताजी ने यह कार्य हाथ
में लिया तथा प्रसन्नत।पूर्वक इसे पूरा किया है ।
झनुवादिका का देह परिचय---
पूज्य जिनमती माताजी का जन्म फाल्गुन शुक्ला १५ सं० १९९० को म्हसंवड ग्राम ( जिला-
सातारा, महाराष्ट्र ) में हुआ | म्हसबड ग्राम सोलापुर के पास स्थित है । जन्म नाम प्रभावती था।
आपके पिता का नाम फूलचन्द्रजी और माताजी का नाम कस्तूरी देवौ था । दुर्भाग्य से प्रभावती के
बचपन में हो माता-पिता काल-कबलित हो गए। फलस्वरूप आपका लालन-पालन आपके मामा के
घर हुआ ।
सन् १९४४ में आधिकारत्न ज्ञानमती माताजी ने म्हसवड़ में चातुर्मास किया। उस समय
चातुर्मास মঈ নক আলাহ্ माताजी से द्रथ्यसंग्रह, तत्त्वाथंसूत्र, कातन्त्र व्याकरण आदि ग्रथों का
अध्ययन करतो थो । उस समय बोस वर्षीय बालिका प्रभावतों भी उन प्रध्ययनरत बालाश्रों में से
एक थी ।
प्रभावती ने बैराग्य से भ्रोभ्रोत होकर सन् १९५४५ मेही दीपावली के दिन १०५ ज्ञानमतीजी
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