आराधना कथा प्रबन्ध | Ārādhanā kathā prabandha

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Ārādhanā kathā prabandha by आचार्य श्री शांतिसागर - Acharya Shri Shantisagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ঠা घामिक उपदेशों को कथा के माध्यम से अस्तुत करने की प्रवृत्ति प्रचीनकाल से चली मा रही है। स्वेलाम्बर आगम साहित्य भें आताराज़ू, सूत्र इृत, रु, स्थानाजु, भगवतीसूज् नायाबम्मकहाओ, उबासगदसाओ अन्तः कृदशाज़ और अनुत्तरोपपातिक, विपाकंसूत्र, उपाऊू, साहित्य, भूलसूत्र एवं छेदसृत्रों में सुन्दर कथायें आयी हैं । उत्तराध्ययन में अनेक भावपूर्ण और शिक्ष'प्रद माल्यान हैं । इष्टिवाद अंज़ में भी कथाओं का सहारा लिया गयाथा । आचार्य कुन्दकुन्द के मावपाहुड में बाहुबलि, मधुपिजु,वक्षिष्ठ मुनि, शिवश्ूृति, बाहु, द्वोपायत शिवकुमाए और भव्यसेन के पवश कथानकों का उल्लेख दै । यतिवुषम ते तिलोयपण्णति मे चे खठ शलाका पुरुषों की जीवनी के सम्बन्ध में प्रामाणिक जातकारी प्रस्तुत की है । इवेताम्बर आगमों पर जो भाष्य ओर टीकायें लिखी गई हैं, उनमें कथाओं का शमावेश्व है। आवश्यक न्लुणि, सृतकृताज़ जूणि, निशीष- चूणि और दश्शवेकालिक भूर्णि भें अनेक सुन्दर कथायें हैं । भगवती आराधना में अतिसंक्षिप्त रुप में ग्राथाओं के माध्यम से कथाओं का निर्देश किया गया है। प्राकृत, अपभ्रश एवं संस्कृत में अनेक स्वतन्त्र गन्थ लिखे गए हैं, इनमें कथाओं की बहुलता है । प्राकृत में पय्म- चरिय, तरगवती, वसुदेवहिडी, समराइच्लकहा, धृताख्यान, लीखावई कहा, धरउप्पन्तमहापुरिसचरियं, सुरसुन्दरी चरियं, कथाकोदाप्रकरण, संवेगरंगशाला, नागपंचमी कहा, सिरि विजयज्द केवलिचरियं महात्रीर अरियं, सिरिपासनाहचरियं, रयणच्नुडरायचरियं, आरुयानमणिकोश सुपा- सनाहशरिय, सिरिवात्र कहा, रमणसेहर कहा, महिवाल कहा, कुमार- पाल पतिवोध, पाइअकहा सगओ, कृबलयमाला, निर्वाणनीलावती कथा कालिकायरियकहाणय, नम्मया सुन्दरी कहाणम, मणिवाल कथा आदि कया साहित्य के अध्ययन की शष्ट से महत्त्वपूर्ण ग्रन्ध हैं । जनाबारयों ने जब संस्कृत को अपनाया तो अनेक कथाग्रन्धों की रचनायें हुई । सिर्द्धापं ने उपमितिभवश्रपंचकृथा, धनपाल ने तिशकसमजरी, हेमचन्द्र ने जिर्षाप्ट झालाका पुरुषदरिवे अतर हरिषेन ते बृहत्कया कोश जेसे मौलिक ग्रन्थों को रचना संस्कृत में की। বৃহ कथाकोश के अतिरिक्त चार आराधनाओं के महस्य को प्रकट




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