कल्याण कल्पतरु स्तोत्र | Kalyan Kalptaru Strot

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Kalyan Kalptaru Strot by आचार्य श्री शांतिसागर - Acharya Shri Shantisagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्राह्मी की प्रतिमुति-गणिनी आर्थिका ज्ञानसतीजी सलेखिका--आर्थिका चन्दनामती जम्बुद्वीप रचना की पावन प्रेरिका परम यूज्या गणिनी आर्थिकारत्न श्री ज्ञानमतो माताजी जिनका परिचय लिखने का प्रयास मैं कर रही हूँ उन्हे एक कुशल शिल्पी कहूँ या कुमारिकाओ की पथप्रदर्शिका, आशु- कवयित्री कहूँ या विदुषी लेखिका, सरस्वती की चल प्रतिमा कहूँ या पूर्णिमा की चाँदनी । सारे ही विशेषण उनके चतुरक्षरी “ज्ञानमती” नाम मे समाहित हो जाते हैं । उत्तर प्रदेश के बाराबकों जिले में छोटे से कस्बे टिकैतनगर के श्रेष्ठी छोटेलालजी क्या कभी सोच भी सके होगे कि मेरी सुकुमार मेना सारे विश्व मे मेरा और मेरे कस्बे का नाम रोशन करेगी ? उन्होंने सोचा हो या नही, माता मोहिनी ने तो मैना की बाल दुर्लभ ज्ञानवधंक धार्ताओ से अनुमानित कर लिया था कि यह एक गृहिणी के रूप में माँ न बलकर जगन्माता बनेगी । वि० स० १८४१ (२२ अक्टूबर, सन्‌ १६४३४) की शरद्‌-पुणिमा ने तो मैना की जन्म-कूडली ही खोलकर रख दी थी कि इसकी ज्ञान चाँदनी से समस्त ससार को शीतलता प्राप्त होने वाली है । जीवन के १७ वर्ष पूर्ण हुए थे, बैराग्य के बढ़ते कदमो को सबल मिला. आचार्य श्री देशभ्ूषण महाराज का, अतः वि० स० २००८ (सच १४५२) की शरद्‌ पूर्णिमा को सप्तम प्रतिमा रूप ब्रह्मचये व्रत ग्रहण किया । पुन वि० स० २००६ चैत्र कृ० एकम (सनु १४५३) मे महावीर जी अतिशय क्षेत्र पर क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर “'वीरमती” नाम प्राप्त किया । अनन्तर आचार्यश्री शातिसागर महाराज के दर्शन करके उनकी सल्लेखना के पश्चात्‌ वि० स० २०१३, वेशाख कृ० २ (सन्‌ १४५६) को माघोराजपुरा (राज०) मे आचार्यश्रो के प्रथम पट्टाघीश आचायें श्री बोरसागर महाराज से आर्थिका दीक्षा घारण कर ज्ञानमती नाम से अलकुृत हुई । सघर्षों की विजेत्री एव दुढता की मूर्ति स्वरूप आपका यह चार लाइनों का परिचय ही आपकी जोवन्त ज्योति को प्रज्वलित कर रहा है।




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